मेदिनीनगर : गुरु सम्मान समारोह में वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि आज यह देखा जा रहा है कि गुरु के प्रति शिष्य का श्रद्धा व लगाव कम है. वहीं गुरु भी अपना प्रेम शिष्य को नहीं दे पाते. आखिर यह स्थिति क्यों बनी? शिष्य व गुरु का संबंध कायम करना सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है. समाज में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है. क्योंकि वह ज्ञान देते हैं. गुरु के प्रति सम्मान व श्रद्धा घटा है. आज जरूरत है समाज में गुरु को आदर देने की.
वहीं गुरु को भी यह चाहिए कि अपने बेटे की तरह शिष्य को प्यार दें और उसके जीवन को बेहतर बनाने के लिए परिश्रम करें, ताकि समाज के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान हो सके. हर कीमत पर गुरु का आदर व सम्मान होना चाहिए. प्रभात खबर ने समारोह आयोजित कर प्रतिभा गढ़नेवाले गुरुजनों को सम्मानित करने का काम किया है. प्रभात खबर का प्रयास है कि समाज के लोग जागरूक हों और गुरू को सम्मान दें और गुरु भी शिष्य को अपने बेटे की तरह उसका भविष्य गढें.
गुरुजनों के आशीर्वाद के बिना नहीं मिल सकता मुकाम : विजय बहादुर
विशिष्ट अतिथि प्रभात खबर के बिजनेस हेड विजय बहादुर ने स्वागत भाषण में कहा कि समारोह का मुख्य उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है. समाज में बदलाव लाने के लिए काम करने की जरूरत है. हमारे अंदर देश व समाज में बदलाव लाने की क्षमता है. जरूरत है इस क्षमता का उपयोग कर समाज में बेहतर वातावरण तैयार करने की. गुरुजनों के परिश्रम व आशीर्वाद के बिना जीवन में सफलता नहीं मिल सकती. आज जरूरत है गुरुजनों को सम्मान व आदर देने की, तभी समाज में बेहतर वातावरण तैयार होगा.
गुरु गढ़ते हैं देश का भविष्य: डॉ राहुल
समाजसेवी डॉ राहुल अग्रवाल ने कहा कि गुरु देश का भविष्य गढ़ते हैं. गुरु के कठिन परिश्रम से ही शिष्य का भविष्य बेहतर बनता है. इसलिए गुरुजनों को सम्मान देना चाहिए. यह परंपरा शुरू कर प्रभात खबर ने एक बेहतर पहल की है. इससे समाज में एक बेहतर वातावरण तैयार होगा. कार्यक्रम के आयोजन के लिए उन्होंने बधाई दी.
लोकगीत की मिठास को आमजनों तक पहुंचाना ही उद्देश्य : चंदन
प्रसिद्ध लोकगीत गायिका चंदन तिवारी ने बातचीत के क्रम में कहा कि लोकगीत को मुकाम तक पहुंचाना ही उनका मकसद है. इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने संगीत का क्षेत्र चुना है. उनका प्रयास है कि लोकगीत की मिठास को देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी रहनेवाले लोगों तक पहुंचायें. इसी मिशन के तहत वह काम कर रही हैं. वैसे बचपन से ही उनका लगाव संगीत से था. मां रेखा तिवारी के मार्गदर्शन में संगीतकला में पारंगत हुई. कम उम्र में ही उन्होंने संगीत के क्षेत्र में बहुत कुछ हासिल किया और उसे आगे बढ़ाने के लिए वह प्रयासरत हैं.
वाराणसी स्थित बीएचयू, दरभंगा विश्वविद्यालय के अलावा महाराष्ट्र के वर्द्धा स्थित अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में भी उन्होंने भोजपुरी लोकगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया और उन्हें काफी सम्मान मिला. हाल में ही झारखंड की राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने उन्हें अपराजिता सम्मान से सम्मानित किया था. भोजपुरी लोकगीत की महक झारखंड, बिहार, उतरप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आज राज्यों में भी उन्होंने फैलाने का प्रयास किया. इसी कड़ी में भोजपुरी एकेडमी के तहत मध्यप्रदेश में कई बार भोजपुरी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया. वह मूलत: बिहार राज्य के आरा जिला की रहने वाली हैं. उनके पिता ललन तिवारी बोकारो स्थित एचसीएल में नौकरी करते हैं.