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दुर्भाग्य से लड़ कर जीने का नाम है जगन तिवारी

कौशल पलामू जिले के रेहला में रहनेवाले जगन तिवारी की उम्र लगभग चार माह थी, जब पिता का साया उठ गया. इकलौती संतान को मां लीलावती कुंवर ने मजदूरी करके पाला. पढ़ने में जगन काफी मेधावी है. वर्ष 2006 में 10वीं में पढ़ता था. सभी कहते थे कि बेटा लायक हो गया है, जल्द ही […]

कौशल

पलामू जिले के रेहला में रहनेवाले जगन तिवारी की उम्र लगभग चार माह थी, जब पिता का साया उठ गया. इकलौती संतान को मां लीलावती कुंवर ने मजदूरी करके पाला. पढ़ने में जगन काफी मेधावी है.

वर्ष 2006 में 10वीं में पढ़ता था. सभी कहते थे कि बेटा लायक हो गया है, जल्द ही लीलावती के दिन बहुरेंगे. लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. अगस्त, 2006 में ट्रेन में चढ़ने के क्रम में जगन का पैर फिसला और वह गिर गया. उसके दोनों पैर काटने पड़े. लीलावती ने पूरी जमा पूंजी खर्च कर दी. बेटे के इलाज के लिए अपनी जमीन भी बेच दी. जगन को ठीक होने में लगभग तीन साल लग गये. दुर्भाग्य के बीच जीवन यापन कर रहे जगन ने हार नहीं मानी. उसने परिस्थितियों से लड़ने की ठानी.

विश्रामपुर नगर पर्षद क्षेत्र के रेहला खुर्द के रहनेवाला जगन बताता है कि जब दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गये और मां ने उसके इलाज के लिए जमीन भी बेच दी, तो उसने अपनी नियति के साथ आगे बढ़ने की सोची. तय किया कि जब सब कुछ खत्म हो चुका है, तो अब खोने को कुछ बचा नहीं. घर बैठ कर दुर्भाग्य पर रोने से कुछ नहीं होगा. मेहनत करनी ही होगी. किसी से दया की भीख नहीं मांगेगा. उसने फिर से पढ़ाई शुरू की. पढ़ने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगा. अभी स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा है. वह कंप्यूटर का जानकार है.

इसी की बदौलत एक कॉलेज में उसकी नौकरी लग गयी है.

जगन कहते हैं कि हौसला हो, तो किसी परिस्थिति से डट कर मुकाबला किया जा सकता है. उसके साथ घटना घटी. यदि इसके बाद भाग्य को कोसने लगता, तो जिंदगी थम जाती. यदि किसी की मदद से जीवन यापन करता, तो लोगों के एहसानों तले दब जाता. इसलिए स्वाभिमान के साथ जीने की ठानी. वह कहता है कि पैर नहीं तो क्या हुआ, हौसला तो है.

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