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बंजर भूमि पर लायी हरियाली, आयी खुशहाली
विपरीत हालात से लड़ने की मिसाल है बेतला के किसान अनिल कुमार बेतला : परिस्थितियां चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हो, यदि इंसान ठान ले कि कुछ कर गुजरना है, तो कुछ भी मुश्किल नहीं. बस जरूरत होती है ईमानदार प्रयास की. कुछ इस तरह का उदाहरण पेश किया है बेतला के कुटमू गांव […]
विपरीत हालात से लड़ने की मिसाल है बेतला के किसान अनिल कुमार
बेतला : परिस्थितियां चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हो, यदि इंसान ठान ले कि कुछ कर गुजरना है, तो कुछ भी मुश्किल नहीं. बस जरूरत होती है ईमानदार प्रयास की. कुछ इस तरह का उदाहरण पेश किया है बेतला के कुटमू गांव के किसान अनिल कुमार ने. अपनी मेहनत के बल पर अनिल ने बंजर भूमि पर हरियाली ला दी है.
अनिल की कहानी खासतौर पर पलामू के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उस इलाके के किसान ने खेती कर अपने जीवन को बदला है, जहां अब खेती-किसानी घाटे का सौदा माना जा रहा है. अनिल कुटमू गांव का रहनेवाले हैं. वर्षों पहले की बात है, तब अनिल ने इंटर पास की थी. पिता नौकरी में थे, कोई परेशानी नहीं थी. जीवन चल रहा था, लेकिन युवा अनिल के मन में कुछ अलग करने की तमन्ना थी, पर किया क्या जाये, इसका कोई विजन नहीं था.
बिहार में अनिल की रिश्तेदारी है. यदा-कदा रिश्तेदारों के घर आना-जाना होता है, उन्होंने बिहार के लोगों को देखा कि कैसे खेती-किसानी कर वे लोग समृद्धि की राह पर आगे बढ़ रहे हैं. बिहार में बाढ़ की समस्या है, लेकिन झारखंड में वह भी समस्या नहीं है, तो क्यों न खेती को ही जीविका का आधार बनाया जाये. इसके बाद वह गांव लौटे. पढ़ाई करने के बाद भी सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म नहीं भरा. सीधे उस खेत तक पहुंचे, जिसे बंजर घोषित किया जा चुका था.
जब उन्होंने मेहनत शुरू की तो लोगों ने उपहास भी उड़ाया. कहा कि सब हार गये हैं, यह नये किसान पैदा हुए हैं. एक-दो साल में खेती-किसानी का नशा उतर जायेगा, तब बाबू को पंजाब ही जाना पड़ेगा कमाने. इस उपहास को झेलने के बाद भी अनिल ने कोई जवाब नहीं दिया. क्योंकि अनिल ने ठाना था कि वह मेहनत कर दिखायेगा कि कैसे बंजर खेत को हरा किया जा सकता है. आज अनिल अपने मिशन में सफल हैं.
वह बताते हैं कि करीब 10 एकड़ पुश्तैनी थी, जो बंजर था. जब घर के लोगों के सामने प्रस्ताव रखा था कि खेती करेंगे तो किसी ने हिम्मत नहीं बढ़ाया. घर से लेकर बाहर तक हौसला पस्त करने वाले. स्थिति यह थी कि उनके खेत के बगल से जो नाला बह रहा था, उसमें से उनके पड़ोसी पानी भी नहीं लेने दे रहे थे. उसके बाद कर्ज लेकर पंप खरीदा, श्रमदान से एक तालाब का भी निर्माण किया और उसी से पटवन कर खेती करने लगे. सबसे पहले बंजर भूमि पर साहील बाकर धान लगाया, जो पैदा हुआ, बाद में आधुनिक तरीके से खेती करने लगे. अभी स्थिति यह है कि उस 10 एकड़ के खेत में करीब 200 क्विंटल धान हो रहा है.
इसके अलावा करीब 20 क्विंटल गेहूं, चना, सरसो आदि की उपज हो रही है. इसके अलावा कई फलदार वृक्ष भी खेत में लहलहा रहे हैं. दो तालाब का निर्माण कराया है, जिससे पटवन के साथ-साथ मछली पालन भी करते हैं, साथ ही पशुपालन भी. खेती से समृद्धि भी आयी है.
अनिल की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है. अनिल का कहना है कि कोई भी संपन्न व सफल किसान अलग खेती नहीं करता, लेकिन खेती को अलग तरीके से करता है, इसलिए वह सफल होता है. खेती-किसानी में सफलता के लिए लगन, परिश्रम, तकनीक के अलावा व्यवसाय का हुनर होना जरूरी है.
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