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सर्वसम्मति से नर्णिय आदिवासी समाज का महत्वपूर्ण पहलू

सर्वसम्मति से निर्णय आदिवासी समाज का महत्वपूर्ण पहलू प्रभाकर तिर्की देश के संविधान पर बहस छिड़ी है. 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे बहुमत के जरिये फैसले थोपने में नहीं, बल्कि सर्वसम्मति से निर्णय लेने पर यकीन करते हैं. यकीनन […]

सर्वसम्मति से निर्णय आदिवासी समाज का महत्वपूर्ण पहलू प्रभाकर तिर्की देश के संविधान पर बहस छिड़ी है. 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे बहुमत के जरिये फैसले थोपने में नहीं, बल्कि सर्वसम्मति से निर्णय लेने पर यकीन करते हैं. यकीनन यह बड़ी बात है. प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से कम से कम देश के आदिवासी इलाकों को अवश्य बल मिलेगा जहां सर्वसम्मति से निर्णय लेने की परंपरा आज भी जीवित है. सर्वसम्मत निर्णय आदिवासी पारंपरिक समाज व्यवस्था का गुणात्मक पहलू है एवं आदिवासी जीवन शैली की विशिष्ट अवधारणा है. संविधान सभा की बहस में आदिवासियों की सुरक्षा के लिए प्रावधान बनाने के क्रम में उनके सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों पर लंबी चर्चा हुई है. चर्चा के क्रम में संविधान सभा के सदस्य स्व जयपाल सिंह ने कहा था इस देश के लोगों को लोकतांत्रिक तरीका आदिवासियों से सीखना पड़ेगा. तब उनकी बातों को तवज्जो नहीं दी गयी. आज 65 वर्षों बाद देश जिस दौर से गुजर रहा है, उनमें से प्रमुख है निर्णय लेने में आने वाली रुकावटें. अल्पमत और बहुमत के बीच बहस के कई मुद्दे ऐसे होते हैं जिनके कारण सरकार को कई निर्णय लेने में कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. आज इन्हीं परिस्थितियों में स्वत: सर्वसम्मति से निर्णय लिये जाने की बात सामने आयी है. वास्तव में संसदीय प्रणाली में अल्पमत और बहुमत के आधार पर ही फैसले लेने की परंपरा रही है, चाहे बहस जितनी भी हो, जब बात निर्णय पर आती है तब अल्पमत पर बहुमत के फैसले ही थोपे जाते हैं. प्रधानमंत्री के सर्वसम्मति से निर्णय लेने पर दिये गये वक्तव्य से भारतीय लोकतंत्र में निश्चय ही निर्णय लेने की प्रक्रिया में गुणात्मक परिवर्तन आयेगा. परंतु यह प्रक्रिया संसद के सत्र तक और सरकार के विशेष मसलों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया तक ही सीमित हो तो बात नहीं बनेगी. संसद से लेकर पंचायत व्यवस्था के संवैधानिक इकाइयों तक निर्णय लेने की सर्वसम्मत प्रक्रिया कैसे लागू होगी, यह भी चर्चा अति आवश्यक है. यह अच्छी बात है कि आदिवासी इलाकों में पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचली इकाइयों में बहुमत प्राप्त करने के प्रयासों के कारण उत्पन्न होने वाली वैमनस्यता को दूर करने के लिए आज भी पारंपरिक समाज व्यवस्था की तर्ज पर सर्वसम्मति से निर्णय लेने की प्रक्रिया अपनायी जा रही है. वर्तमान पंचायत चुनाव के तहत ग्रामस्तरीय वार्ड सदस्यों के चुनाव में सिर्फ रांची और लोहरदगा, गुमला इत्यादि जिलों में एक सौ से भी ज्यादा प्रत्याशी सर्वसम्मति से विजयी घोषित किये गये हैं. ऐसे गांवों में लोगों ने पूर्व में ही सर्वसम्मति से अपना प्रतिनिधि चुन लिया. उनके लिये चुनाव की आवश्यकता ही नहीं पड़ी.(लेखक आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता हैं)

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