महिलाअों को हर हाल में स्वावलंबी बनायें : सुदर्शनमंत्री ने यूएन की कार्यशाला में महिलाअों के उत्थान पर रखी अपनी बातेंप्रमुख संवाददाता, रांचीकेंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री सुदर्शन भगत ने कहा कि हर हाल में महिलाअों को स्वावलंबी बनायें. केंद्र सरकार महिलाअों के उत्थान को लेकर कृत संकल्प है. महिलाअों को ध्यान में रख कर योजनाएं बनायी जाये और उसकी निगरानी भी हो. पशु पालन, कुकुट पालन आदि में बेहतर काम कर महिलाअों को आगे बढ़ाया जा सकता है. श्री भगत कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे. यहां महिलाअों के उत्थान पर विस्तृत रूप से चर्चा हुई. कार्यशाला का आयोजन यूएन वूमेन द्वारा किया गया था. इस कार्यशाला में तामिलनाडू, उतरप्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल, अोड़िशा, झारखंड सहित कई राज्यों के एनजीअो सहित अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. महिलाअों के प्रति लोगों की सोच बदले : नीलकंठराज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा कि आज महिलाअों के प्रति लोगों की सोच देख कर पीड़ा होती है. समाज में इस तरह की कुरीतियों को दूर करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि महिलाअों का जिस तरीके से विकास होना चाहिए था, आज वह नहीं हो पाया है. महिलाएं उस हिसाब से नहीं बढ़ सकी हैं. महिलाअों के प्रति जो विचार होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. यही वजह है कि आज झारखंड में महिलाएं काफी पीछे हैं. महिलाअों को पैर पर खड़ा रखने के लिए कुछ योजना बनाने की जरूरत है. मंत्री ने कहा कि महिलाअों के विकास में ग्रामीण विकास की अहम भूमिका है. मनरेगा में मजदूरी कर उन्हें लाभ मिल सकता है.दूसरी पाली में तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. इसमें राज्य के ग्रामीण विकास के प्रधान सचिव एनएन सिन्हा, महाराष्ट्र रूरल लायवलीहुड मिशन के सीइअो सुमन रावत सहित अन्य ने अपनी बातें रखी.कार्यशाला में तीन महिलाअों ने रखी अपनी बातेंमर जायेंगे, पर मैला नहीं ढोयेंगे : कंवरछतरपुर (मध्य प्रदेश) की लाड कंवर ने दलित महिलाअों की आवाज उठायी. उन्होंने कहा कि दलित महिलाअों का न तो पुनर्वास हो रहा है. ना ही रोजगार मिल रहा है. सब कुछ बड़ों को ही मिल रहा है. महिलाएं मैला ढोने का काम करती रही. बहुत प्रयास के बाद उन्हें मैला ढोने के काम से रोका गया, पर उनके पास कोई काम ही नहीं है. उनका वैकल्पिक व्यवस्था हो. हमने संकल्प लिया है कि जहर खाकर मर जायेंगे, पर मैला नहीं ढोयेंगे.एक साल से नहीं मिल रहा काम : अनिताचित्रकूट (उतर प्रदेश) से आयी अनिता माते ने कहा कि पहले वे लोग 40-50 रुपये में मजदूरी कर रहीं थीं. बाद में मनरेगा आया, तो राहत मिली. उनलोगों ने 3000 महिलाअों को मिला कर एक महिला समिति बनायी. काम शुरू किया. मजदूरी का काम करने लगी, तो सब हंसने लगा कि महिलाअों से क्या मजदूरी का काम होगा. अब स्थिति हो गयी है कि एक साल से काम नहीं मिल रहा है. कहां से बच्चे को खिलायें. क हां पढ़ायें.महिलाअों का शोषण क्यों : गीताबिहार में आजीविका मिशन पर काम करनेवाली मुजफ्फरपुर (बिहार) की गीता देवी ने बताया कि वह ससुराल वालों की वजह से दो बच्चों को लेकर मायके में रह रही थी. आजीविका मिशन में काम करती रही. ट्रेनिंग ली. इसके बाद काम शुरू किया. उसने कहा कि ऐसा महिलाअों के साथ ही क्यों होता है? उन्हें ही क्यों शोषित किया जाता है. बचपन से ही लड़कियों के साथ दूसरा और लड़कों के साथ दूसरा व्यवहार होता है. महिलाअों को दबाया जाता है. लड़कों को पूरी छूट दी जाती है.
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महिलाओं को हर हाल में स्वावलंबी बनायें : सुदर्शन
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