फोटो:सैकत नेट से प्रतिनिधि, मेदिनीनगर.नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जनसंचार विभाग प्रभारी डॉ कुमार वीरेंद्र ने कहा कि नाटक लोकविधा है, उपन्यास व कहानी से पहले नाटक का जन्म हुआ. नाटक व अन्य विधाओं में कई अंतर है. नाटक जहां जनसमूह को जोड़ता है, वहीं उपन्यास व कहानी व्यक्ति को एकल बनाता है. जनसमूह तक सत्य को पहुंचाने का सशक्त माध्यम नाटक है. डॉ कुमार वीरेंद्र आइएमए हॉल में चल रहे नाट्य कार्यशाला में बोल रहे थे. कार्यशाला का आयोजन इप्टा ने किया था. इसमें अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त नाटककार व निर्देश प्रोवीर गुहा के अलावा प्रशिक्षणार्थी व इप्टा के लोग मौजूद थे. नाटक, अभिनेयता व प्रतिबद्धता विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र की समृद्ध संस्कृति का अंदाजा वहां के नाटक के स्तर से लगाया जा सकता है. नाटक उपन्यास से पहले की विधा है, इसके बावजूद आलोचकों की नजर में वह उपेक्षित रहा है. जहां तक प्रतिबद्धता का सवाल है जनता को साहित्य की ओर मोड़ने का काम नाटक को करना चाहिए. यह कार्य नाटककार व नाट्य निर्देशक के कौशल पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा कि संस्कृत, बंगला, मराठी व तेलगु भाषा में जिस तरह से नाटकों की समृद्ध परंपरा रही है, वैसी परंपरा हिंदी में कम रही है. समय व समाज में बहुचर्चित कविताओं, कहानियों व उपन्यासों का भी नाट्य रूपांतर किया जाना चाहिए, ताकि समय की बेजोड़ कृतियां आम जनमानस तक सुगमता से पहुंच सके. इस मौके पर शैलेंद्र कुमार, शब्बीर अहमद, शैलेंद्र सिंह, उपेंद्र कुमार मिश्रा, प्रेम प्रकाश, शशि पांडेय, अजीत, संजीत, रवि आदि मौजूद थे.
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जन समूह को जोड़ता है नाटक : डॉ वीरेंद्र
फोटो:सैकत नेट से प्रतिनिधि, मेदिनीनगर.नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जनसंचार विभाग प्रभारी डॉ कुमार वीरेंद्र ने कहा कि नाटक लोकविधा है, उपन्यास व कहानी से पहले नाटक का जन्म हुआ. नाटक व अन्य विधाओं में कई अंतर है. नाटक जहां जनसमूह को जोड़ता है, वहीं उपन्यास व कहानी व्यक्ति को एकल बनाता है. जनसमूह तक […]
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