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मजदूरी कर जिंदगी काट रहे रैयत

लाचारी. दो जून की रोटी जुटाने के लिए भटक रहे पैनम के विस्थापित 31 मार्च 2015 को पाचुवाड़ा पैनम कोल माइंस बंद होने के बाद कठालडीह के विस्थापितों की सुधि कोई ले नहीं रहा है. घोषणा के बाद भी पक्का मकान, नौकरी, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं हो पायी है. कीमती जमीन गंवाने के […]

लाचारी. दो जून की रोटी जुटाने के लिए भटक रहे पैनम के विस्थापित

31 मार्च 2015 को पाचुवाड़ा पैनम कोल माइंस बंद होने के बाद कठालडीह के विस्थापितों की सुधि कोई ले नहीं रहा है. घोषणा के बाद भी पक्का मकान, नौकरी, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं हो पायी है. कीमती जमीन गंवाने के बाद भी विस्थापितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है.
अमड़ापाड़ा : पैनम से विस्थापित परिजनों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है. 31 मार्च 2015 के बाद जिले के अमड़ापाड़ा के पचुवाड़ा स्थित पैनम कोल माईंस के बंद होने से पैनम की ओर से विस्थापितों को दी जानेवाली सुविधाएं बंद कर दी गयी है. आलम यह है कि कीमती जमीन गंवाने के बावजूद विस्थापित रैयतों के लिए रोज का दाना जुगाड़ करना भी नामुमिकन हो रहा है. विस्थापित रैयतों बताया कि जिस समय पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसपीसीएल) व इस्टर्न मिनरल ट्रेडिंग एजेंसी (एम्टा) ने संयुक्त रूप से पहल करते हुए पैनम कोल माईंस लिमिटेड के तहत रैयतों की जमीन आवंटित की थी. उस समय विस्थापित रैयतों को पुनर्वास के लिए पक्का मकान, नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, विद्युत,
पेयजल सहित सभी सुविधाएं दिये जाने की घोषणा की गयी थी. इकरारनामा के मुताबिक अब तक उपरोक्त सभी सुविधाएं कंपनी के रैयतों को मुहैया करायी जानी चाहिए थी. परंतु ऐसा नहीं हुआ. सरकारी पेंच में फंसकर पैनम के बंद होने के बाद से ही विस्थापित हुए रैयतों को सुविधा मिलना बंद हो गयी. स्थिति यह है कि कृषि योग्य भूमि देकर भी रैयत भूखमरी के कगार पर हैं. सड़क किनारे पड़े कोयला व प्रतिदिन मजदूरी की बदौलत किसी तरह अपना जीवन-यापन करने को विवश हैं.
31 मार्च 2015 को बंद हुआ था पैनम विस्थापितों को दी जानेवाली सुविधाएं भी बंद
आर्थिक तंगी में जी रहे कठालडीह के 86 विस्थापित परिवार
31 मार्च 2015 के बाद पैनम में सरकार ने उत्खनन पर रोक लगा दी है. उत्खनन कार्य पर रोक लगाये जाने के बाद विस्थापित अमड़ापाड़ा प्रखंड के कठालडीह गांव के 86 परिवार के समक्ष आज कठिन परिस्थति उत्पन्न हो गयी है. दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में खदान में बचे-खुचे कोयले चुनने, जंगलों से लकड़ी, पत्ता, महुआ आदि चुनने के अलावे कुछ भी शेष नहीं रह गया है. तंगहाली के कारण विस्थापित हुए परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं. विस्थापित प्राण सोरेन, जयराम मरांडी, सकल मुर्मू, रंजन मुर्मू, वकील सोरेन का कहना है कि अब इन लोगों की स्थिति काफी नाजुक हो गयी है. प्रशासन भी उपरोक्त मामले में कोई पहल नहीं कर रही है. स्थानीय प्रशासन को उपरोक्त मामले में पहल करनी चाहिए थी. वह नहीं हो पा रहा है.
क्या कहते हैं डीसी
उपायुक्त ए मुथु कुमार ने कहा कि पैनम से विस्थापित हुए लोगों को न्याय दिलाने के लिए प्रशासन कटिबद्ध है. अब टास्क फोर्स की 4-5 बैठक मामले को लेकर की जा चुकी है. साथ ही संबंधित रिपोर्ट तैयार कर सरकार को भी भेजी गयी है. जल्द ही इस दिशा में ठोस पहल की जायेगी.

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