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बारिश से धीमी पड़ी चाक की चाल
बारिश ने मौसम को तो सुहाना कर दिया, लेकिन इसका बुरा असर रोशनी के पर्व दीवाली पर साफ तौर पर पड़ रहा है. इस पर्व में मिट्टी के दीये की बड़ी अहमियत होती है, लेकिन इस बारिश के मौसम में चाक के कलाकार कुम्हार दीया नहीं बना पा रहे हैं. पाकुड़ : दीपावली के दो […]
बारिश ने मौसम को तो सुहाना कर दिया, लेकिन इसका बुरा असर रोशनी के पर्व दीवाली पर साफ तौर पर पड़ रहा है. इस पर्व में मिट्टी के दीये की बड़ी अहमियत होती है, लेकिन इस बारिश के मौसम में चाक के कलाकार कुम्हार दीया नहीं बना पा रहे हैं.
पाकुड़ : दीपावली के दो माह पूर्व से कुम्हार मिट्टी के दीये बनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं. मिट्टी के दीये, खिलौने, घरौंदे और गणोश-लक्ष्मी की प्रतिमा को आकार देने लगते हैं. पर नवरात्र के बाद उनका काम रफ्तार पकड़ता है. इस बार भी कुम्हार पूरी तैयारी के साथ जुट गये हैं, पर बारिश से उनके खिले चेहरे मायूस हो गये हैं. कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.
कुम्हार बताते हैं तेज धूप हो तो दीया सुखाने में तीन से चार दिन लगता है. पर अभी के मौसम में 15 दिन में भी सुखाना मुश्किल हो रहा है. धूप निकलते ही दीये को सुखाने के लिए बाहर और बारिश शुरू होते ही दीये की टोकरी अंदर रख रहे हैं. इस क्रम में कई दीये टूट जाते हैं जिससे नुकसान हो जा रहा है.
ऑर्डर मिलने पर ही बनाते हैं दीया : जीतन
कीताझोर निवासी पेशे से कुम्हार जीतन पंडित का कहना है कि पहले के तुलना में कुम्हारों की स्थिति अभी के समय में बदतर हो चुकी है. लोग अब चाइनीज लाइटों का सहारा लेते हैं. जिस कारण दीये की बिक्री नहीं होती है.
काफी मेहनत से वे दीया बनाते हैं जिसका उचित दाम तक नहीं मिलता है. बताया कि 100 दीया के मात्र 50-60 रुपये ही मिलते हैं जो काफी कम है. 100 दीया के लिए कम से कम 100 रुपये मिलना चाहिए जो नहीं मिलता है. जिस कारण अब वह ऑर्डर पर ही दीया बनाने का काम करते हैं.
दीया खरीदे तो मिट्टी के हीं
कुम्हारों को रोजगार मिले और लोग स्वदेशी समानों के प्रति जागरूक हो इसे लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा जिले में कई बार स्वदेशी अपनाओ अभियान चलाया गया है. इस अभियान का असर जिले वासियों पर होता नहीं दिख रहा है.
पिछले बार भी चाइनीज लाइट के कुम्हारों के बनाये दीये काफी संख्या में रह गये थे. इस वर्ष इस अभियान का असर लोगों पर कितना होता है यह तो वक्त ही बतायेगा. लेकिन अगर जिले के लोग जागरूक हो जायेंगे और दीपावली में मिट्टी के दीये की खरीदारी करते हैं तो कुम्हारों को उनका मेहनताना भी मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार तो आयेगा ही, वहीं स्वदेशी अपनाओ अभियान को भी बल मिलेगा.
अब तो नेम निष्ठा के लिए ही लोग खरीदते हैं दीये
दीपावली पर घर में दीपक जलाने का अलग ही महत्व होता है. परंतु आधुनिकता के इस युग में घर के सजावट के लिए अब लोगों ने दीये को भूल कर चाइनीज लाइट को अपना लिया है. चाइनीज लाइट के कारण बाजारों में दीये की बिक्री कम होने लगी. अगर चार-पांच साल पहले की बात करें तो लोग घर के सजावट के लिए काफी मात्रा में दीये की खरीदारी करते थे.
लेकिन चाइनीज के लाइट के सस्ते दरों के कारण लोगों ने दीये की ओर से ध्यान हटा दिया. लोग अब नेम-निष्ठा के लिए चंद मिट्टी के दीये खरीद कर सिर्फ लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं. दीये की बिक्री नहीं होने के कारण कुम्हारों को अपना मेहनताना तक नहीं मिल पाता है. जिससे कुम्हारों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या भी उत्पन्न हो रही है.
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