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समृद्धशाली रहा है लोहरदगा जिले का इतिहास
गोपी कृष्ण कुंवर लोहरदगा : लोहरदगा जिले का इतिहास काफी समृद्धशाली रहा है. लोहरदगा जिला प्रगति के पथ पर अग्रसर है, लेकिन जिले का विकास जिस गति से होना चाहिए था, वैसा आज तक नहीं हो पाया है. 17 मई 1983 को लोहरदगा जिला बना. लोगों ने कई सपने देखे थे, उम्मीद थी कि जिला […]
गोपी कृष्ण कुंवर
लोहरदगा : लोहरदगा जिले का इतिहास काफी समृद्धशाली रहा है. लोहरदगा जिला प्रगति के पथ पर अग्रसर है, लेकिन जिले का विकास जिस गति से होना चाहिए था, वैसा आज तक नहीं हो पाया है. 17 मई 1983 को लोहरदगा जिला बना. लोगों ने कई सपने देखे थे, उम्मीद थी कि जिला बनने के बाद इसका विकास होगा, लेकिन कुछ सपने पूरे हुए और कुछ अधूरे रह गये. क्षेत्र के कुछ प्रबुद्ध लोग मानते हैं कि लोहरदगा जिले में विकास की असीम संभावनाएं हैं. यहां के कुछ स्थलों को यदि विकसित कर दिया जाये और वहां कुछ सुविधाएं मुहैया करा दी जाये, तो ये स्थल पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकते हैं.
यहां चुल्हापानी, सेरेंगदाग के पठार, बगड़ू, केकरांग जलप्रपात, लावापानी जलप्रपात, निंदी जलप्रपात, धरधरिया जलप्रपात व नंदिनी डैम सहित अन्य प्रपात हैं़ इन्हें देख कर मन को शांति मिलती है, लेकिन न तो इन स्थलों तक पहुंचने के लिए सुगम मार्ग हैं और न ही इन स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित ही किया गया है. यदि इन्हें विकसित कर दिया जाये, तो निश्चित रूप से लोग यहां आकर कुछ क्षण गुजारेंगे. धार्मिक दृष्टिकोण से भी लोहरदगा जिला काफी समृद्ध जिला है. यहां का खखपरता का शिव मंदिर 11 वीं शताब्दी का है. इसे पुरातत्व विभाग द्वारा विकसित किया गया है. महाशिवरात्रि के मौके पर यहां विशाल मेला लगता है.
इसी तरह अखिलेश्वर धाम व कोरांबे महाप्रभु का मंदिर भी लोगों के आस्था का केंद्र है. लोहरदगा का विक्टोरिया तालाब (जिसका निर्माण महारानी विक्टोरिया द्वारा कैदियों से कराया गया था) इस शहर की शान है. यदि इसे विकसित कर दिया जाये, तो निश्चित रूप से शहरी क्षेत्र के लोगों को कुछ क्षण गुजारने का मौका यहां मिलेगा. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई भी सार्थक पहल नहीं की गयी है.
लोहरदगा जिले के स्थापना दिवस पर या फिर अन्य मौकों पर लोहरदगा को मॉडल जिला बनाने के दावे किये जाते हैं, लेकिन समारोह की समाप्ति के बाद तमाम दावे धरे के धरे रह जाते हैं. यही कारण है कि जिला बनने के बाद भी अब तक लोहरदगा में किसानों के उत्पाद रखने के लिए एक कोल्ड स्टोरेज नहीं है.
किसान कड़ी मेहनत कर फसल उगाते हैं, लेकिन कोल्ड स्टोरेज के अभाव में उन्हें अपने उत्पादों को औने-पौने दामों पर बेचने को विवश होना पड़ता है. शहर में अब तक एक बस पड़ाव का निर्माण नहीं हो पाया है.
सड़क के किनारे वाहन खड़े किये जाते हैं, जो कि सड़क जाम का कारण बनते हैं. बिजली के जर्जर तार, जो तेज हवा के झोंके से भी टूट जाते हैं, ये करीब 60 वर्ष पुराने हैं और प्रतिदिन इनके टूटने से बिजली बाधित होती है. शहरी क्षेत्र के कई ऐसे इलाके हैं, जहां जलापूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है.
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