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कक्षा आठवीं तक, छात्राएं 136 और मात्र दो शिक्षकाएं

लातेहार : सरकार छात्रों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने का वायदा करती है. अच्छे परीक्षाफल नहीं आने पर शिक्षकों पर कार्रवाई की चेतावनी दी जाती है. पर क्या यह संभव है कि जिस विद्यालय की आठवीं तक की कक्षा मात्र दो शिक्षकों के भरोसे है और उस विद्यालय में गुणवत्ता युक्त शिक्षा छात्रों को दी जा […]

लातेहार : सरकार छात्रों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने का वायदा करती है. अच्छे परीक्षाफल नहीं आने पर शिक्षकों पर कार्रवाई की चेतावनी दी जाती है. पर क्या यह संभव है कि जिस विद्यालय की आठवीं तक की कक्षा मात्र दो शिक्षकों के भरोसे है और उस विद्यालय में गुणवत्ता युक्त शिक्षा छात्रों को दी जा सकती है. हम बात कर रहे हैं शहर के बीचों बीच स्थित जिला मुख्यालय के एक मात्र राजकीय कन्या मध्य विद्यालय की. इस विद्यालय में आठवीं तक की कक्षाओं में मात्र 136 छात्राएं अध्ययनरत हैं, जिन्हें पढ़ाने के लिए मात्र दो शिक्षक हैं.
इस विद्यालय की स्थापना 21 नवंबर 1950 को हुई थी. बताया जाता है कि एक समय में यह विद्यालय की एक विशेष प्रतिष्ठा थी. संगीत के शिक्षक तक की यहां पदस्थापना थी. विद्यालय में रखे पुरस्कार इस बात के गवाह है कि इस विद्यालय का इतिहास कितना गौरवशाली रहा होगा. लेकिन आज इस विद्यालय की प्रतिष्ठा धूमिल हो चुकी है. वर्ग एक से आठ तक में मात्र 136 बच्चे ही नामांकित हैं. जिला मुख्यालय के एक मात्र कन्या विद्यालय में नामांकित छात्राओं की इतनी कम संख्या इस विद्यालय की दुर्दशा खुद बयां करती है. इन 136 बच्चों में 40 एक स्वयंसेवी संस्था आशा कार्मेल केंद्र की दिव्यांग बच्चियां शामिल हैं. अगर इन छात्राओं को छोड़ दिया जाये तो विद्यालय में नामांकित छात्राओं की संख्या मात्र 96 है.
कक्षा एक में मात्र चार छात्राएं हैं नामांकित
कक्षा एक में मात्र चार छात्राएं ही नामांकित हैं. जबकि कक्षा दो में 11, कक्षा तीन में 13, कक्षा चार में 23, कक्षा पांच में 15, कक्षा छह में 26, कक्षा सात में 20 एवं कक्षा आठ में 24 छात्राएं नामांकित हैं.
आखिर क्यों है इतनी कम संख्या
प्रभात खबर ने विद्यालय के पोषक क्षेत्र में जब अभिभावकों से यह पूछा कि आखिर इस विद्यालय में छात्राओं की संख्या इतनी कम क्यों है और वे अपने बच्चों का यहां क्यों नहीं भेजते हैं.
इस पर अभिभावकों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. कुंदन शौंडिक ने बताया कि विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है. एक-दो शिक्षकों के भरोसे पूरा विद्यालय है. संजीत कुमार ने बताया कि विद्यालय में छात्राओं की घटती संख्या का प्रमुख कारण विद्यालय की व्यवस्था है. सरकार और प्रशासन द्वारा इस विद्यालय की उपेक्षा की जा रही है. अगर शिक्षक ही नहीं रहेंगे तो पढ़ाई कैसे होगी. यही कारण है कि अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट विद्यालय में भेजना अधिक मुनासिब समझते हैं.

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