जयनगर : यदि परिश्रम का माद्दा हो तो कहीं भी बेहतर खेती की जा सकती है. इसे साबित कर दिखाया है खेडोबर के युवा किसान बीरेंद्र यादव ने. इस युवा ने रोजगार के नाम पर खेती को अपनाया और आज जहां एशपौंड के आसपास लोग दिन-रात धूल प्रदूषण व गंदा पानी का रोना रोते रहते है. उसी एशपौंड की बांध के बगल में एशपौंड के रिटर्न पानी से बीरेंद्र ने इस भीषण गर्मी में गरमा धान की खेती शुरू की है. फिलहाल बीरेंद्र की खेत में गरमा धान के अलावे मक्का व मूंग की फसल लहलहा रही है.
धान में अब बाली भी आनी लगी है. बीरेंद्र ने बताया कि 20 कट्ठा जमीन में उसने गरमा धान लगाया है जो तीन माह के अंदर तैयार होगी. यहां खेती लगाने में बीज खाद सहित लगभग 6 हजार रुपये की पूंजी लगी है. हालांकि यहां फसल उगाने के लिए अथक परिश्रम करना पड़ा और परिश्रम रंग लाया है.
उन्होंने बताया कि एक बार रोपा के समय पानी दिया था. बाली आने के समय तथा तैयार होने पर एक बार और पानी दिया जायेगा. बीरेंद्र की यह खेती पूरे इलाका में चर्चा का विषय बन गया है. उसने बताया कि अगर बेहतर फसल हुई तो 20 क्विंटल धान उपज होगी. हालांकि उसने पशुओं द्वारा फसल चर जाने की चिंता जतायी है. उसकी खेत में लगे मक्का के पौधों में बाली आ चुका है.
मक्का की भी बेहतर खेती हो रही है. कोडरमा जिले के जयनगर प्रखंड में खेडोबर पहला गांव है जहां गरमा धान की खेती हो रही है. बीरेंद्र ने बताया कि एक बार वह गर्मी के दिनों में ट्रेन से ओड़िशा जा रहा था. इसी दौरान उसने ट्रेन पर से ही देखा कि चारों तरफ धान की खेती हो रही है. खोजबीन करते हुए पता चला कि इसका बीज बिहार में मिलेगा. वह बिहार पहुंचा और पांच किलो बीज लाकर अपनी खेत में लगाया और आज धान की फसल लहलहा रही है.