जामताड़ा : 10 जनवरी से आदिवासी समाज के सबसे महत्वपूर्ण पूर्व सोहराय शुरू होगा. इसको लेकर समाज के लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. पर्व की तैयारी शुरू हो गयी है. आदिवासी समाज के लोग काफी धूमधाम से इस पर्व को मनाते हैं. बता दें कि सोहराय पूस महीने में नयी फसल के साथ मनाया जाता है. यह पर्व किसी खास तारीख या तिथि को नहीं मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने के लिए मांझी हड़ाम के आदेश पर गोड़ेत द्वारा बैठक बुलाया जाता है.
गांव में सभी व्यक्ति के कुशल-मंगल होने पर ही पर्व मनाने का निर्णय लिया जाता है. पर्व मनाने के लिए दिन तय किया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से तीन दिन का होता है. जिसमें पहले दिन को ऊम (स्नान या साफ-सफाई का दिन) दूसरा दिन को दाकाय (खाने पीने का दिन) और तीसरा व अंतिम दिन को खूनटा़व इस दिन बैल को दरवाजे पर साफ-सुथरा कर खूंटा में बांधा जाता है. तय किए गए दिन सभी मेहमान जमा होते हैं. इस पर्व में खासकर होपोन एरा (शादी-शुदा बेटियों) और मिसरा (शादी-शुदा बहनों) को बुलाया जाता है.
इसलिए यह खासकर इन्हीं (बेटी और बहनों) लोगों का पर्व है. इस पर्व में इनका खूब सेवा-सत्कार किया जाता है. ऊम हीलोक के पहले शाम को गोड़ेत (नायके का सहायक) नायके को तीन मुर्गे सौंपते हैं. जिसमे दो पोण्ड सिम (सफेद मुर्गा) और एक हेड़ाक सिम (एक प्रकार का मुर्गे का रंग) होता है. नायके तीनो मुर्गे को बांधने के पश्चात कुछ नियम-धर्म का पालन करते हैं. जैसे कि उस रात नायके (पूजारी) धरती पर चटाई बिछाकर सोते हैं. गोड़ेत घर-घर जाकर मुर्गा, चावल, नमक, हल्दी आदि एकत्रित करते हैं. नायके स्नान करने के पश्चात अरवा चावल बनाते हैं. उसके पश्चात नायके, गोड़ेत और कुछ ग्रामीण एकत्रित मुर्गों को लेकर गोडटांडी में पूजा करते हैं.