जमशेदपुर: राज्य का गठन हुआ. गठन का उद्देश्य राज्य के साथ-साथ झारखंडी संस्कृति और परंपरा का विकास करना तय किया गया था. स्थापना के 13 साल हो गये, लेकिन झारखंड की कला को समृद्ध बनाने में अपना जीवन लगा देने वाले को पान दुकान में काम करना पड़ रहा है तो किसी को नरेगा में. कुछ रेलवे प्लेटफॉर्म पर कूली का काम कर रहे हैं तो कई दिहाड़ी मजदूरी.
जिस दिन काम मिला उस दिन दीवाली और जिस दिन काम नहीं मिला उस दिन पेट को पानी से भर कर सोना पड़ता है. दरअसल हम बात कर रहे हैं जामडीह के भारतीय छऊ नृत्य युवा संघ की टीम के छऊ कलाकारों की. इस टीम को 1984 में पूरी दुनिया के करीब दो दर्जन देशों के बीच हुए फोक आर्ट फेस्टिवल में प्रथम स्थान हासिल हुआ.
सबों ने सफलता पर खूब तालियां बजायी, लेकिन वापस लौटने पर फिर से दिहाड़ी मजदूरी ही करना पड़ता है. सरकार की ओर से आज तक किसी तरह की कोई सुविधा नहीं मिलने की बात टीम के सदस्यों ने कही.
एक रात परफॉर्मेस का मिलता है दस हजार रुपये त्नटीम के सदस्यों के कहा कि उन्हें रात भर छऊ नृत्य करने एवज में 10,000 रुपये मिलता है. यह राशि 30 से 35 कलाकारों के बीच बंटता है. महीने में एक से दो कार्यक्रम ही कलाकारों को मिल पाते हैं जिससे परिवार चला पाना संभव नहीं है.
मैं नहीं चाहूंगा कि मेरे बच्चे छऊ करें
टीम के गुरु सुधीर कुमार की उम्र 75 साल हो गयी है, ज्यादा उम्र होने की वजह से टीम का संचालन फिलहाल अधर कुमार कर रहे हैं. उन्होंने प्रभात खबर से बात करते हुए कहा कि सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल पाने और अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से कभी-कभी मन करता है कि इसे छोड़ दूं, लेकिन फिर झारखंड की याद आती है. लेकिन मैं यह कभी नहीं चाहूंगा कि मेरे बच्चे भी कभी छऊ नृत्य करें क्योंकि इसकी सेवा करने के बाद भूखे रहना पड़ता है.