जमशेदपुर: नये प्रयोग, नयी खोज और ऊर्जा से ही स्थायी विकास संभव है. उक्त बातें एक्सएलआरआइ के तीन दिवसीय सामाजिक उद्यमिता के राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन सामने आयीं.
ग्रास रूट रिसोर्स (जमीनी संसाधनों और देहाती चीजों के इस्तेमाल) पर विस्तार से चर्चा हुई, जिसमें कई सामाजिक और गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. देसी संसाधनों के इस्तेमाल पर राष्ट्रीय सेमिनार की शुरुआत में सामाजिक संस्था गूंज के संस्थापक निदेशक अंशु गुप्ता ने मुख्य रूप से कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) पर विस्तार से चर्चा करते हुए खास कर देसी संसाधनों के इस्तेमाल पर फोकस किया. डॉ माश्रेल डीसूजा ने कहा कि देसी तकनीक और अन्य स्थानीय संसाधनों के इस्तेमाल से ही भारत सशक्त हो सकता है.
श्रीमती डीसूजा ने कहा कि महिलाओं के समक्ष पानी, खाना आदि से संबंधित परेशानियां दूर किये जाने की जरूरत है, जिसके लिए इसके सबसे कारगर तरीके, जल छाजन योजना को धरातल पर उतारना होगा. प्रोटो विलेज संस्था के संस्थापक कल्याण अक्कीपेडी ने समेकित विकास के लिए गांवों को सुदृढ़ किये जाने की जरूरत बतायी. दूसरे सेशन में ग्रासरूट लेवल (जमीनी स्तर) पर उद्यमिता को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई. कार्यक्रम के मॉडरेटर प्रोफेसर प्रबल सेन ने देश के विकास के लिए सामाजिक उद्यमिता, विशेष रूप से गांवों में उद्यमिता (इंटरप्रेन्योरशिप) को बढ़ावा देने पर जोर दिया. भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट की संस्थापक लक्ष्मी वेंकटेशन ने बताया कि सामाजिक आर्थिक विकास के लिए डाटा दुरुस्त किया जाना सबसे ज्यादा जरूरी है.