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एमजीएम में नहीं है शव ले जाने को एंबुलेंस

जमशेदपुर : कंधे पर पत्नी के शव को उठाये पैदल चलते एक आदिवासी की तसवीर गुरुवार को मीडिया में छायी रही. दरअसल यह वाकया ओड़िशा के पिछड़े जिले कालाहांडी का है, जहां अस्पताल से शव को घर तक ले जाने के लिए वाहन की व्यवस्था नहीं की गयी. लेकिन इधर, कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी […]

जमशेदपुर : कंधे पर पत्नी के शव को उठाये पैदल चलते एक आदिवासी की तसवीर गुरुवार को मीडिया में छायी रही. दरअसल यह वाकया ओड़िशा के पिछड़े जिले कालाहांडी का है, जहां अस्पताल से शव को घर तक ले जाने के लिए वाहन की व्यवस्था नहीं की गयी. लेकिन इधर, कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम के हालात भी कुछ अच्छे नहीं है.
यहां भी मरीज के मौत होने के बाद घर तक शव पहुंचाने के लिए एक एंबुलेंस तक नहीं है. लोगों को निजी खर्च पर वाहन का इंतजाम कर शव को ले जाना पड़ता है. ऐसे में दूर-दराज के गरीब परिवारों को सबसे अधिक परेशानी होती है. कई लोगों के पास शव ले जाने तक का पैसा नहीं होता है. शव नहीं ले जाने की स्थिति में कई लोग मजबूर होकर यहीं दाह संस्कार कर देते है. जबकि कई लोग किसी तरह चंदा कर शव को ले जा पाते है.
21 घंटे तक पड़ा रह गया था शव. जनवरी में डुमरिया रंगामाटी निवासी राम सबर की पत्नी सोमवारी सबर की इलाज के क्रम में मौत हो गयी थी. राम सबर के पास इतना पैसा नहीं होने था कि पत्नी का शव घर तक ले जा सके. कोई व्यवस्था नहीं कर पाने के कारण सोमवारी का शव लगभग 21 घंटे तक अस्पताल में ही पड़ा रहा. राम सबर ने इसके लिए अधीक्षक समेत अन्य पदाधिकारियों से मदद मांगी, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली. तत्कालीन डीसी डॉक्टर अमिताभ कौशल की पहल पर अस्पताल अधीक्षक ने एमजीएम अस्पताल के एंबुलेंस से शव को भिजवाया.
शव के लिये प्राइवेट एंबुलेंस
अस्पताल में शव ले जाने की व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों को प्राइवेट एंबुलेंस का इस्तेमाल करना पड़ता है. ऐसे में एंबुलेंस चालक शव को निर्धारित स्थान पर पहुंचाने के लिए मनमानी कीमत वसूल करते है. इसका सबसे अधिक असर गरीब परिवारों पर पड़ता है.
अस्पताल में शव ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस नहीं है. सरकार की ओर से ऐसा कोई नियम भी नहीं है. लेकिन सरकार के स्तर पर यह जानकारी मांगी गयी है कि अस्पताल में प्रतिदिन कितने शवों का डिस्पोजल होता है. ओडिशा के एक एनजीओ ने भी नि:शुल्क शव को घर पहुंचाने के लिए प्रपोजल दिया है. उससे बात चल रही है.
डॉ विजय शंकर दास, अधीक्षक एमजीएम

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