आठवीं अनुसूची में स्थान तो मिला, पर स्थिति अब भी जस की तस
संताली के शिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं, प्राइवेट शिक्षण को मान्यता भी नहीं
इच्छुक विद्यार्थी चाह कर भी नहीं कर पाते संताली भाषा की पढ़ाई
।।दुर्योधन सिंह।।
जमशेदपुरः संतालों के प्रति न्याय के नाम पर संताली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल तो कर दिया गया, लेकिन उसके बाद से केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों ने भी उसे उसके हाल पर छोड़ दिया है. एक ओर संताली में देश के संविधान का संताली अनुवाद तैयार कराया जा रहा है और संताली के लेखकों को अकादमी पुरस्कारों से नवाजा जा रहा है, लेकिन वहीं, अनुसूची में शामिल होने के बरसों बाद भी प्राथमिक स्कूलों में उसकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पायी है. यहां तक कि उसके प्रसार में लगी स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रशिक्षण को भी मान्यता नहीं मिल पा रही है.
झारखंड सरकार है और भी आगे
वैसे तो संताली के प्रभाव वाले प. बंगाल तथा ओडि़शा में भी संताली भाषा की शिक्षा की कोई खास व्यवस्था नहीं हो पायी है, लेकिन झारखंड सरकार तो और आगे निकल गयी है, जिसने शिक्षक-नियुक्ति में क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान तो अनिवार्य कर दिया, लेकिन किसी भाषा के पठन-पाठन की अब तक कोई व्यवस्था नहीं कर सकी. यहां तक कि संताली की शिक्षा की व्यवस्था कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं की पढ़ाई और पाठ्यक्रम को भी वह मान्यता नहीं दे रही है. इसके कारण विभिन्न सरकारी नौकरियों में जाने के लिए चाह कर भी विद्यार्थी आधिकारिक रूप से कोई क्षेत्रीय भाषा सीख नहीं पा रहे. संताली के विकास तथा प्रसार के लिए चिंतित प्रो दिगंबर हांसदा ने बताया कि नेताओं ने संताली के लिए बातें तो बहुत कीं, लेकिन काम के लिए कोई आगे नहीं आता.
संताली भाषा के कई पद अब भी खाली
प्रो हांसदा ने कहा कि अनुसूची में शामिल होने के बाद हर कार्यालय को संताली अनुवादक की जरूरत होगी, लेकिन पढ़ाई ही नहीं होगी तो लोग कहां से आयेंगे? एलबीएसएम कॉलेज (करनडीह) में इंटरमीडिएट से संताली की पढ़ाई होती है. लेकिन वहां वास्तव में यहीं से संताली की पढ़ाई की शुरुआत होती है. इससे पहले संताली पढ़ने की कहीं कोई व्यवस्था ही नहीं है. इसी से बहुत कम छात्र संताली पढ़ते हैं. बल्कि ओडि़शा तथा बंगाल से ज्यादा बच्चे आकर संताली पढ़ रहे हैं. उनमें गैर संताल बच्चे भी हैं. उन्होंने बताया कि गैर संताली के संताली भाषा का अध्ययन करने पर तो उसकी नौकरी पक्की है, क्योंकि आदिवासियों से उनके लिए आरक्षित पद ही नहीं भर रहे, तो बाकी पदों के लिए आदमी कहां से आयेंगे. आज भी इस भाषा के कई पद खाली पड़े हैं.
आइसेक के पाठ्यक्रम को मान्यता नहीं
ऑल इंडिया संताली एजुकेशन कौंसिल के प्रशासक बिरसा मुर्मू बताते हैं कि उनकी संस्था स्वैच्छिक रूप से संताली की पढ़ाई तथा परीक्षा की व्यवस्था करती है, लेकिन उनके पाठ्यक्रम को किसी राज्य में मान्यता नहीं मिली, जिससे उनके छात्र आगे नहीं बढ़ पाते. उन्होंने केंद्र तथा संबद्ध राज्य सरकारों को भी बार-बार पत्र लिखा, लेकिन किसी राज्य ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की. हां, बंगाल में कई विभागों ने अब उनके छात्रों को एडहॉक बेसिस पर रखना शुरू किया है, जिससे कुछ उम्मीद बंधी है. लेकिन यह समस्या का सर्वकालिक हल नहीं है. उनका कहना है कि राज्य सरकारें उनके पाठ्यक्रम को मान्यता दें या खुद पाठ्यक्रम निर्धारित करें, जिसे वे लागू करें, कोई तो रास्ता निकले संताली के लिए, लेकिन संबद्ध कोई भी राज्य सरकार इसके लिए सामने नहीं आयी है.