जमशेदपुर: भारतीय फिल्म का मतलब सिर्फ बॉलीवुड की फिल्में नहीं है, बल्कि सही उससे अलग बन रही फिल्में ही वास्तव में भारतीय फिल्मों का प्रतिनिधित्व करती हैं. ऐसी फिल्में ही भारत, भारतीय समाज और उसकी संस्कृति को सही तरह से रूपायित करती हैं.
बॉलीवुड (इसमें देश के किसी सेंटर में बन रही व्यावसायिक फिल्में शामिल हैं) की फिल्में तो बल्कि भारतीय समाज के उपहास और अपमान तक जाकर भी व्यवसाय मात्र कर रही हैं. उक्त आशय के विचार आज सेल्युलायड चैप्टर द्वारा आयोजित ‘जमशेदपुर फिल्म फेस्टिवल’ के दौरान सीएफई में देश के तीन युवा फिल्मकारों, बिरजू रजक, लीना मणिमेखलाइ तथा हिमांशु शेखर खटुआ ने पत्रकारों से बात करते हुए व्यक्त किये. ‘मीट द प्रेस’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उक्त संभावनाशील फिल्मकारों ने अपनी फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में आने की प्रेरणा तथा प्रारंभिक संघर्ष की चर्चा तो की ही, नवोदित फिल्म मकर्स के समक्ष आने वाली चुनौतियों का भी विस्तार से वर्णन किया.
बिरजू रजक ने जमशेदपुर जैसे छोटे शहर सेल्युलायड चैप्टर के छोटे आयोजनों से अपनी शुरुआत की कहानी तो बतायी ही, ऐसे आयोजनों की उपयोगिता पर भी प्रकाश डाला. पॉलिटिकल एक्टिविस्ट की पृष्ठभूमि के साथ फिल्म मेकिंग में आयीं लीना ने छोटे फिल्मकारों द्वारा बनायी जा रही समानांतर फिल्मों को ही सही भारतीय फिल्में बताते हुए कहा कि बॉलीवुड, टॉलीवुड की फिल्में व्यावसायिक उत्पाद से ज्यादा कुछ नहीं, जिनका उद्देश्य ही व्यवसाय है. हिमांशु शेखर खटुआ ने मुंबई से फिल्म मेकिंग की शिक्षा लेने के बाद वापस ओड़िशा लौटने के संबंध में बताया कि वे अपनी फिल्मों में अपनी धरती की बात करना चाहते थे, जिसके लिए ही उन्होंने ओड़िशा वापस लौटने का निर्णय लिया.