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संताल समाज के रीति-रिवाज को मिलेगा लिखित रूप

जमशेदपुर: करनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान प्रांगण में बुधवार को पारंपरिक ग्रामप्रधानों की एक बैठक हुई. इसकी अध्यक्षता देश परगना बैजू मुर्मू ने की. इसमें कोल्हान के तीनाें जिले के करीब 71 पारंपरिक ग्रामप्रधान ने शिरकत की. बैजू मुर्मू ने कहा कि आदिवासी संताल समाज अब रिवाज व नीति-नियम को मौखिक के साथ लिखित रूप देने […]

जमशेदपुर: करनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान प्रांगण में बुधवार को पारंपरिक ग्रामप्रधानों की एक बैठक हुई. इसकी अध्यक्षता देश परगना बैजू मुर्मू ने की. इसमें कोल्हान के तीनाें जिले के करीब 71 पारंपरिक ग्रामप्रधान ने शिरकत की. बैजू मुर्मू ने कहा कि आदिवासी संताल समाज अब रिवाज व नीति-नियम को मौखिक के साथ लिखित रूप देने की पहल की है.

अखिल भारतीय माझी परगना महाल के दिशोम परगना नित्यानंद हेंब्रम इसे लिखित रूप देने में लगे हैं. उन्होंने कहा कि समय के साथ आदिवासी समाज में बदलाव हो रहा है, लेकिन पूर्वजों की व्यवस्था को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. पूर्वजों ने सामाजिक रीति-रिवाज व नीति नियम समाज को एकसूत्र में बांधने के लिए बनाया है.

बैठक में बिष्टुपुर गोपाल मैदान को कार्यक्रम स्थल प्रस्तावित किया गया. जिला प्रशासन से बातचीत कर इसकी अाधिकारिक घोषणा की जायेगी. बैठक में लखन मार्डी, नरेश मुर्मू, दिगंबर हांसदा, सीआर माझी, सलखु सोरेन, दुर्गा मुर्मू, मधु सोरेन, सोमनाथ सोरेन, कृष्णा हांसदा समेत कई पारंपरिक माझी बाबा मौजूद थे.

बैजू मुर्मू ने बताया कि आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष-सालखन मुर्मू अपना राजनीतिक फायदे के लिए अखिल भारतीय माझी परगना मांडवा नामक संगठन बनाकर समाज को चुनौती देने का काम कर हैं. यह बिलकुल गलत है. माझी परगना महाल एक सामाजिक व्यवस्था है. यह कोई संगठन नहीं है.

तालसी ग्रामप्रधान दुर्गाचरण मुर्मू ने बताया कि विगत दिनों ग्रामप्रधान व संताल समाज के बुद्धिजीवियों का एक प्रतिनिधिमंडल रांची जाकर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिला था. राज्यपाल ने पारंपरिक ग्रामप्रधानों की ओर से पूर्वी सिंहभूम जिले में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने की इच्छा जतायी थी.
जनवरी में आयोजित कार्यक्रम में आयेंगी राज्यपाल
बैठक में बैजू मुर्मू ने बताया कि 26 से 31 जनवरी के बीच आयोजित माझी परगना महाल के कार्यक्रम राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू शिरकत करेंगी. वह पारंपरिक माझी-परगना के साथ बैठक कर समाज के विभिन्न मुद्दाें पर विचार-विमर्श करेंगी. उम्मीद है कि इसमें कई महत्वपूर्ण चीजें छन कर आयेंगी, जो आदिवासी समाज के हित में होगा. कार्यक्रम में बिहार, बंगाल, ओड़िशा, असम व झारखंड के पारंपरिक ग्रामप्रधान शामिल होंगे.

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