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लोक एवं शास्त्रीय कला प्रस्तुतियों से महका रवींद्र भवन

लोक एवं शास्त्रीय कला प्रस्तुतियों से महका रवींद्र भवन(फोटो मनमोहन की होगी)झारखंड नवोदित समारोह के दूसरे दिन हुईं नौ कलाकारों की प्रस्तुतियांवरीय संवाददाता जमशेदपुर पूर्व क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता के तत्वावधान में साकची रवींद्र भवन में चल रहे ‘झारखंड नवोदित महोत्सव’ का दूसरा दिन अनेक मनमोहक कला प्रस्तुतियों से सुशोभित हुआ. इनमें शास्त्रीय से लेकर […]

लोक एवं शास्त्रीय कला प्रस्तुतियों से महका रवींद्र भवन(फोटो मनमोहन की होगी)झारखंड नवोदित समारोह के दूसरे दिन हुईं नौ कलाकारों की प्रस्तुतियांवरीय संवाददाता जमशेदपुर पूर्व क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता के तत्वावधान में साकची रवींद्र भवन में चल रहे ‘झारखंड नवोदित महोत्सव’ का दूसरा दिन अनेक मनमोहक कला प्रस्तुतियों से सुशोभित हुआ. इनमें शास्त्रीय से लेकर सुगम एवं लोक कलाओं तक की प्रस्तुतियां शामिल रहीं, आज की संध्या को सुदूर असम से लेकर ओड़िशा तक और बंगाल से लेकर बिहार तक के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से सजाया. शुरुआत बंगाल की उभरती ओड़िशी नृत्यांगना आफरीन नसरीन द्वारा ‘दशावतार’ की प्रस्तुति के साथ हुआ, आफरीन ने बड़े सुंदर ढंग से भगवान विष्णु के दसों अवतारों को नृत्य शैली में पिरो कर प्रस्तुत किया. समारोह की अगली प्रस्तुति असम से आयीं सत्रिया नृत्यांगना दिशाद्विति बरुआ की रही, जिसमें उन्होंने सत्रिया नृत्य शैली के तीन टुकड़े प्रस्तुत किये श्लोकर, झुमुरा एवं रमदानी के रूप में. एक ही नृत्य कार्यक्रम में गुंथीं उनकी तीनों प्रस्तुतियों ने असमी संस्कृति और उसकी भक्ति-भावना को बखूबी प्रस्तुत किया. आयोजन की तीसरी प्रस्तुति ओड़िशा के उभरते ओड़िशी नर्तक बिजन पलाई ओड़िशी शैली में मधुराष्टकम की प्रस्तुति की. ‘अधरं मधुरं वदनं मधुरं / नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। / हृदयं मधुरं गमनं मधुरं / मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।’ वल्लभाचार्य की इस अमर कृति के मधुर भावों को नृत्य में पिरो कर की गयी प्रस्तुति को सभी ने सराहा. इसके पश्चात बंगाल के प्रसिद्ध कथक नर्तक राजीव घोष की मोहक प्रस्तुति का सबने दिल खोल कर स्वागत किया. उन्होंने कथक शैली में शिव वंदना, ताल धमार एवं कृष्ण को अर्पित भजन ‘प्रकटे ब्रज नंदलाल, सकल सुख निधनियां।…’ की भक्ति-भाव से सराबोर प्रस्तुति की. कार्यक्रम की अगली कड़ी में बंगाल के कलाकार अभिनव आनंद अपनी गजलों का गुलदस्ता लेकर मंच पर आये, जिन्हें श्रोताओं की तालियों का प्रतिसाद मिला. हेमेंद्र मुखर्जी के तबला वादन को भी दर्शकों की सराहना मिली. धनंजय धीवर के बाउल संगीत ने सबको द्रवित किया. भोजपुरी के दो कलाकारों की प्रस्तुतियां कार्यक्रम में प्रस्तुत हुईं. बिहार से आये हिमांशु शेखर तथा कुंदन कुमार ओझा भोजपुरी लोग गायन के उभरते नाम हैं, जिन्होंने भोजपुरी संस्कृति की झलक बखूबी दिखायी. का पर करूं सिंगार…भोजपुरी की एक लोकोक्ति है ‘कापर करूं सिंगार पुरुख मोर आन्हर रे…’ स्पष्ट है, अंधे की पत्नी का शृंगार व्यर्थ ही है. पूर्वी क्षेत्रीय संस्कृति केंद्र के तत्वावधान में रवींद्र भवन में चल रहा तीन दिवसीय ‘झारखंड नवोदित महोत्सव’ इसी लोकोक्ति का उदाहरण बन कर रह गया है. राष्ट्रीय कला-फलक पर अपनी पहचान बना चुके उभरते युवा कलाकारों को लेकर हो रहा उक्त राष्ट्रीय महत्व का आयोजन आयोजकों की अदूरदर्शिता के कारण निष्फल होने के कगार पर खड़ा है. समारोह में शामिल कलाकारों की सुंदर प्रस्तुतियां बेशक सराहनीय हैं, लेकिन दर्शकों-श्रोताओं के अभाव के कारण सब बेकार सा लगता है. लाखों रुपये खर्च कर किये जा रहे उक्त कला समारोह में दर्शकों का नहीं पहुंचना कलाकारों के लिए हतोत्साहित करने वाला साबित हो रहा है. किन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि जमशेदपुर में कला के शौकीन और कला पारखियों का अकाल पड़ गया है, बल्कि ऐसी स्थिति आयी है आयोजकों की अदूरदर्शिता के कारण जिन्होंने इस आयोजन के प्रचार-प्रसार पर ध्यान ही नहीं दिया. न तो कहीं इसकी सूचना दी गयी और न इसके लिए कोई प्रचार अभियान चला, बल्कि आयोजकों ने आयोजन शुरू कर दिया, मानो कला प्रेमी स्वयं ही सूंघते हुए रवींद्र भवन में उमड़ पड़ेंगे. इतने बड़े आयोजन के लिए समुचित प्रचार अवश्य होना चाहिए, अन्यथा आगे कलाकार जमशेदपुर में प्रस्तुति देने के नाम पर ही बिदकने लग सकते हैं.

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