परीक्षाएं व दबाव में आते बच्चे :::असंपादितडॉक्टर और इंजीनियर बनना हर छात्र का ख्वाब होता है. क्लास 10 व इससे पहले से छात्र इसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं. इसके बाद शुरू हो जाती है इसके प्रिपरेशन की तैयारी. कोचिंग व ट्यूशन क्लासेस में भाग-दौड़. इसमें अक्सर छात्रों पर खुद की सफलता की बनिस्बत माता-पिता व शिक्षकों की आकांक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव रहता है. ऐसे में स्वाभाविक रूप से तैयारी के दौरान छात्र तनाव में आ जाते हैं. इसका परिणाम उनके रिजल्ट पर पड़ता है. एक्सपर्ट्स की राय में छात्रों को इससे उबरने की जरूरत है. इससे उबरने के कई रास्ते हो सकते हैं. लाइफ @ जमेशदपुर की रिपोर्ट …दबाव की वजह है नकारात्मक सोचनकारात्क सोच के कारण ही तनाव होते हैं. तैयारी के दौरान छात्र यह सोचते रहते हैं कि वह कितना पढ़े कि उनका परीक्षा में चुनाव हो जाये. वह सभी प्रश्नों का जवाब दे सकें. कंसल्टेंट सुभाष चंद्र मिश्र बताते हैं कि जब तक छात्र नकारात्क सोच से उबरेंगे नहीं तब तक वह दबाव में रहेंगे. छात्र कई तरह के दबाव खुद ले लेते हैं. वह बताते हैं कि हर चीज की दो परिस्थिति होती है. एक जो आपके हाथ में है और दूसरा, जो आपके हाथ में नहीं है. जो हाथ में उसे ईमानदारी से करना चाहिए. उदाहरण के लिए छात्रों के हाथ में मन लगाकर पढ़ना है. समय पर होम वर्क पूरा करना है. उन्हें सिर्फ इस पर ही फोकस करना चाहिए. लेकिन इस पर से छात्रों का ध्यान हट जाता है. वह तैयारी से अधिक रिजल्ट के बारे में सोचने लग जाते हैं.तीन वजहें हैं तनाव बढ़ने केहर प्रतियोगिता परीक्षा में सीटों की संख्या निश्चित रहती है. प्रतिभागी हजारों होते हैं. ऐसे में प्रतियोगिता अधिक हो जाती है. छात्र सोचने लगते हैं कि सीट कम है उनका चुनाव होगा या नहीं? मनोवैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार साहू के मुताबिक तीन वजहों से छात्र तनाव में आते हैं. सही समय पर तैयारी नहीं होने से. दूसरा, छात्र तैयारी से अधिक माता-पिता और रिजल्ट के बारे में सोचते हैं. इसके अतिरिक्त एग्जाम फोविया भी होता है. दबाव की वजह से छात्र परीक्षा को हौव्वा समझने लगते हैं. उन्हें लगता है कि परीक्षा में पता नहीं कैसे प्रश्न पूछे जायेंगे. इस वजह से अक्सर परीक्षा की तैयारी केदौरान अनिद्रा, भूख की कमी आदि होने लगती है.मुश्किल हो जाता है घर से निकलनाजानकारों की मानें तो प्रतियोगिता परीक्षा लॉट्री के समान होती है. इसमें असफल होने वाले छात्रों पर घर-परिवार और समाज का दबाव अधिक होता है. माता-पिता यहां तक कह जाते हैं कि बच्चे ने खराब रिजल्ट लाकर समाज मेंउनकी नाक कटा दी. इस वजह से छात्र दबाव में आ जाते हैं. कई बार खराब रिजल्ट आने पर माता-पिता का मौन होना भी शब्दों पर भारी पड़ जाता है.कॉन्सस हो जाते हैं बच्चेकई बार ऐसा भी होता है कि छात्र परीक्षा को लेकर ज्यादा ही कॉन्सस हाे जाते हैं. उन्हें अपने परफॉरमेंस को बरकरार रखना होता है, माता-पिता की आशाओं पर खरा भी उतरना होता है. ऐसी स्थिति में वह परीक्षा में जानते हुए भी गलती कर बैठते हैं.अरुचिकर विषय भी बनता है वजहजानकार यह भी बताते हैं कि अरुचिकर विषय भी दबाव बढ़ाने का काम करता है. कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे माता-पिता के दबाव में इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी करने लग जाते हैं. इसमें वह सफल भी हो जाते हैं. लेकिन रुचि का क्षेत्र नहीं होने से अंत में यह बोझ लगने लगता है. ऐसे में माता-पिता को बच्चों की रुचि का ख्याल रखना चाहिए.पड़ता है माहौल का असरबच्चों के शिक्षण पर माहौल का भी असर पड़ता है. देखा गया है कि अच्छे संस्थान में छात्र एक-दूसरे की मदद करते हैं. अच्छे ग्रुप होने से उनके बीच अच्छी अंडरस्टेंनिंग बढ़ती है. यह आपके तनाव को कम करते हैं. इसके विपरीत बुरे संस्थान और ग्रुप का बच्चों पर गलत असर पड़ता है.दूसरों को पीछे छोड़ने की प्रतियोगितामनोवैज्ञानिक निधि श्रीवास्तव बताती हैं कि आज छात्रों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता देखने को नहीं मिलती. वह दूसरों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं. एेसी चीज बच्चों में कभी नहीं डालनी चाहिए. माता-पिता व शिक्षकों को यह समझना चाहिए कि सभी का अपना इंडीविजुअल होता है.माता-पिता की भूमिका होती है महत्वपूर्णयहां पर माता-पिता की भूमिका अहम हो जाती है. उन्हें बच्चों को हौसला देना चाहिए न कि अपनी बात उन पर थोपना चाहिए. उन्हें बच्चाें को मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. उन्हें बच्चों को रिजल्ट की चिंता से दूर रहने के लिए कहना चाहिए. जो होगा अच्छा होगा. हर स्थिति में माता-पिता साथ खड़े हैं. बच्चों को यह अाभास देना चाहिए. ऐसा करने से बच्चों को बल मिलेगा. माता-पिता और शिक्षकों को किसी भी स्थिति में बच्चे को दबाव में नहीं आने देना चाहिए.काउंसिलिंग है जरूरीजब बच्चे अधिक तनाव में हों तो उन्हें एक बार जरूर काउंसलर के पास ले जाना चाहिए. काउंसलर उन्हें योगा-प्रणायाम द्वारा मानसिक रूप से हर परिस्थिति का सामाना करने के लिए तैयार करते हैं. उनकी घड़बड़ाहट दूर करते हैं. कई बार इससे उबरने के लिए दवा भी दी जाती है. जानकारों के मुताबिक बच्चों को निराशा से उबारने के लिए उनके सामने देश-समाज के उदाहरण पेश करना होगा. उन्हें असफल होने के बाद कामयाब रहे लोगों का उदाहरण देकर दोबारा प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.ऐसा करेंतैयारी के दौरान गैप लें, कुछ समय मनोरंजन आदि के लिए रखेंइस दौरान टहलना व हल्का-फुल्का खेलना अच्छा रहता हैसकारात्मक सोच के साथ तैयारी करें, रिजल्ट की चिंता नहीं करेंमाता-पिता व शिक्षकों को बच्चों को दबाव में नहीं आने देना चाहिएउन्हें बच्चों को अभास देना चाहिए कि वेलाेग हर स्थिति में उनके साथ हैं
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परीक्षाएं व दबाव में आते बच्चे :::असंपादित
परीक्षाएं व दबाव में आते बच्चे :::असंपादितडॉक्टर और इंजीनियर बनना हर छात्र का ख्वाब होता है. क्लास 10 व इससे पहले से छात्र इसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं. इसके बाद शुरू हो जाती है इसके प्रिपरेशन की तैयारी. कोचिंग व ट्यूशन क्लासेस में भाग-दौड़. इसमें अक्सर छात्रों पर खुद की सफलता की बनिस्बत माता-पिता […]
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