महिलाओं ने मिल कर बदली तकदीर जब भी दहेज उत्पीड़न की बात आती है, तब महिलाओं को महिलाओं का दुश्मन करार दे दिया जाता है. लेकिन, यह सच नहीं है. सच यह है कि महिलाएं एक हो जायें, तो उनकी तकदीर बदल सकती है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां महिलाओं ने एकजुट होकर अपनी पारिवारिक और सामाजिक स्थिति दुरुस्त की. गरीबी को टक्कर दिया और आर्थिक स्थिति दुरुस्त कर परिवार तथा बच्चों के भविष्य को संवारा. नवरात्रि के अवसर पर लाइफ @ जमशेदपुर नव दुर्गा रूपी उन महिलाओं की कहानी पेश कर रहे हैं, जिन्होंने अपने सामूहिक प्रयास से न सिर्फ परिवार को संभाला, बल्कि समाज में नव चेतना का संचार भी किया… ————सप्ताह में 10 रुपये की बचत ने तैयार की सशक्तीकरण की राह मां संतोषी महिला मंडल सदस्य : 20गांव : रोलाडीह (पोटका) मां संतोषी महिला मंडल की सदस्य ललिता सरदार बताती हैं कि समूह सात साल से चल रहा है. इसमें हर सदस्य सप्ताह में 10 रुपये जमा करता है. उनके मुताबिक एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा यह समूह बनाया गया है. समूह में जब ज्यादा रुपये जमा गये, तो सरकार की तरफ से भी अनुदान राशि दी गयी. इस तरह समूह के पैसे और अनुदान राशि मिलाकर बड़ी पूंजी जमा हो गयी. समूह में अधिक पैसे हो जाने पर सदस्यों ने व्यक्तिगत तौर पर व्यवसाय करने का निर्णय लिया. ललिता सरदार बताती हैं कि समूह की 9 सदस्य पॉल्ट्री व्यवसाय से जुड़ गयीं. सभी अलग-अलग फॉर्म चलाती हैं. समूह की ललिता सरदार के अलावा मलिना सरदार, कुलाठी सरदार, सरस्वती सरदार, लखीमणि सरदार आदि पॉल्ट्री व्यवसाय से जुड़ी हैं. लखीमणि सरदार बताती हैं कि उनके पति प्रदीप सरदार खेती-बाड़ी करते हैं. दो बच्चे हैं. खेती से घर ठीक से नहीं चल पाता था. पहले उनकी सास समूह से जुड़ी थीं. उनके न रहने पर लखीमणि समूह की सदस्य बन गयीं. अभी उनके फॉर्म में 500 छोटे मुर्गे हैं. इससे उन्हें 30-40 दिनों में सब-कुछ काटकर चार हजार रुपये से अधिक मिल जाते हैं. अब उन्हें घर चलाने में दिक्कत नहीं होती है. वह पति को भी खेती-बाड़ी में पैसे से मदद करती हैं. कुलाठी सरदार के पति सिमंत सरदार भी खेती-बाड़ी करते हैं. उनके दोनों बच्चे स्कूल जाते हैं. बच्चों को पढ़ाने व अन्य घरेलू खर्च के पैसे खेती-किसानी से नहीं निकल पाते थे. पॉल्ट्री फॉर्म से जुड़कर वह भी एक बार में चार-पांच हजार रुपये तक कमा लेती हैं. मलिना सरदार की भी पहले यही हालत थी. पति अमल रंजन खेती-किसानी करते हैं. तीन बच्चों की मां मलिना बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उनके जीवन में काफी बदलाव आया. अब पैसों को लेकर दिक्कत नहीं होती. जीवन खुशहाल हुआ है. सरस्वती सरदार भी फॉर्म चलाती हैं. वह बताती हैं कि इसमें पति रामलखन सरदार उनकी मदद करते हैं. उनके चार बच्चे हैं. फॉर्म की वजह से ही उनका जीवन पहले से काफी अच्छा हुआ है. कैसे होता है काम समूह की महिलाएं अपने-अपने फॉर्म में चूजों की साफ-सफाई का काफी ख्याल रखती हैं. गांव में लगभग हर घर में एक पॉल्ट्री शेड है, जो एसबेसटस से बने हैं. शेड में पर्याप्त रोशनी और हवा के लिए इसे जालीदार बनाया गया है. फर्श में बालू व मिट्टी रहती है, जो फॉर्म को अधिक गंदा नहीं होने देती. जगह-जगह पर प्लास्टिक के बर्तनों को मुर्गे की पहुंच तक टांग दिया जाता है. इसमें खाने के लिए समय-समय पर मक्का व सोयाबीन का दर्रा दिया जाता है. अंजना पोटका ग्रामीण पॉल्ट्री सहकारी समिति लिमिटेड रोलाडीह की अध्यक्ष हैं. उनका इस समूह की सदस्यों से गहरा रिश्ता है. एक तो वह रोलाडीह गांव की रहने वाली हैं और दूसरा, समूह का पोल्ट्री व्यवसाय उन्हीं की देखरेख में होता है. वह बताती हैं कि सहकारी समिति की ओर से समूह की सदस्यों को चूजे दिये जाते हैं. फॉर्म में 35-40 दिनों में चूजा बड़े होकर मुर्गा बन जाता है. सहकारी समिति मुर्गों को कलेक्ट कर बेचती है. अंजना बताती हैं कि प्रत्येक सदस्य को एक बार में चार से पांच हजार रुपये तक आराम से मिल जाते हैं. वैसे यह मुर्गे की कीमत पर भी निर्भर करता है. वह बताती हैं कि समिति से 18 गांव के 319 फॉर्म जुड़े हैं. ललिता सरदार बताती हैं कि मुर्गा उठ जाने के बाद फॉर्म की सफाई व चूना आदि से पुतायी की जाती है. दो-चार दिन बाद ही फॉर्म में चूजे रखे जाते हैं. यह नये चूजे के लिए जरूरी है. सफाई-पुताई होने से चूजे में बीमारी नहीं होती. ————– पति परिवार चलाते हैं, तरक्की के लिए मिल कर खड़ा किया कपड़े का काम मुस्कान महिला समिति सदस्य : 10 गांव : हल्दीपोखर (पोटका)सबीना खातून हल्दीपोखर मुसलिम बस्ती में रहती हैं. उनके घर में माता-पिता के अलावा भाई-बहन भी हैं. घर की माली हालत खस्ता थी. वह घर के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए प्रयास कर रही थीं. इसी दौरान उन्हें पोटका प्रखंड सेे स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के बारे में पता चला. सबीना बताती हैं कि इस बारे में बस्ती की महिलाओं को घर जा-जाकर बताया. शुरू में महिलाओं को एक जगह इकट्ठा करना मुश्किल हो रहा था. महिलाएं सवाल करती थीं कि समूह से फायदा क्या होगा? समूह की विस्तृत जानकारी देने के बाद धीरे-धीरे महिलाएं सदस्य बनने के लिए तैयार हुईं. 10 महिलाओं का समूह बना, जिसका नाम मुस्कान महिला समिति रखा गया. सबीना खातून इसकी अध्यक्ष बनीं. नाबार्ड की मदद से समूह के नाम से बैंक में खाता खुल गया. समूह की सचिव रूबी परवीन के मुताबिक समूह दो जनवरी 2015 से सक्रिय है. सभी सदस्य प्रत्येक सप्ताह 20 रुपये जमा करती हैं. यह एक साथ समूह के खाते में चला जाता है. प्रत्येक सप्ताह समूह की बैठक होती है. सचिव बताती हैं कि अभी तक रिवॉल्विंग फंड (आरएफ) नहीं मिला है. इस वजह से सदस्यों ने उधार लेकर कपड़े का व्यवसाय करने का निर्णय लिया. समूह को मूलधन वापस करने की शर्त पर पैसे मिले थे. रूबी खातून के पति मजदूरी करते हैं. घर में पांच बच्चे हैं. इनके लालन-पालन और पढ़ायी में पैसे खर्च होते हैं. घर में अभी अभाव है, लेकिन वह नहीं चाहतीं कि इसके कारण उनका भविष्य बर्बाद हो. इसलिए, वे लोग थोक में थान भर कपड़ा मंगाती हैं. इससे मिला लाभ खाते में चला जाता है. अभी मूलधन चुकाना है. सरकार की तरफ से भी फंड मिलने की आस है. वह बताती हैं कि सभी की स्थिति में जरूर सुधार होगा. हलीमा खातून के चार बच्चे हैं. सभी पढ़ रहे हैं. पति बस कंडक्टर हैं. उनके घर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. वह बताती हैं कि समूह की तरफ से कपड़े का बिजनस शुरू किया गया है. अभी बिजनस की शुरुअात है. धीरे-धीरे लोग जान रहे हैं. पैसे आने लगेंगे तो घर की स्थिति में जरूर सुधार होगा. शहनाज बेगम, संजीता बेगम, सजीना खातून भी समूह से जुड़ी हैं. वह बताती हैं कि सप्ताह में 20 रुपये जमा करने होते हैं. हमलोग रोज दो-तीन रुपये बचाकर सप्ताह में पैसे जमा करते हैं. आरएफ आ जायेगा तो हमलोग उधार चुकता कर देंगे.
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महिलाओं ने मिल कर बदली तकदीर
महिलाओं ने मिल कर बदली तकदीर जब भी दहेज उत्पीड़न की बात आती है, तब महिलाओं को महिलाओं का दुश्मन करार दे दिया जाता है. लेकिन, यह सच नहीं है. सच यह है कि महिलाएं एक हो जायें, तो उनकी तकदीर बदल सकती है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां महिलाओं ने एकजुट होकर अपनी पारिवारिक […]
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