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मां! तेरे आंचल में जिंदगी

हर त्योहार या दिवस पर अब यह फैशन चल पड़ा है कि फेसबुक और ट्विटर पर बधाइयां या शुभकामनाएं देकर हम अपना फर्ज पूरा समझ लेते हैं. मदर्स डे की पूर्व संध्या (शनिवार) से ही सोशल साइट्स ऐसी शुभकामनाओं और संदेशों से भर गये. लेकिन क्या हमने अपनी मां को उनके पैर छू, उनसे आशीर्वाद […]

हर त्योहार या दिवस पर अब यह फैशन चल पड़ा है कि फेसबुक और ट्विटर पर बधाइयां या शुभकामनाएं देकर हम अपना फर्ज पूरा समझ लेते हैं. मदर्स डे की पूर्व संध्या (शनिवार) से ही सोशल साइट्स ऐसी शुभकामनाओं और संदेशों से भर गये.

लेकिन क्या हमने अपनी मां को उनके पैर छू, उनसे आशीर्वाद ले, उन्हें यह जीवन देने के लिए शुक्रिया कहा? आज के समय में यह संकट हर संस्कृति में है. ट्विटर ने ‘पब्लिक सर्विस अनाउंसमेंट’ वीडियो के जरिये लोगों से आह्वान किया है, कि मदर्स डे के दिन आप ट्विट ना करें. उन्हें फोन करें.

ताकि आप अपनी मां के साथ कुछ सच्चे भावुक पल फिर से जी सकें (अमेरिका में न्यूक्लियर फैमिली के कारण मां का बेटे के साथ होना भी आश्चर्यजनक हो गया है, इसलिए अपनी संतान का एक फोन भी उन्हें नयी जिंदगी दे जाता है). यह हमारे समय का कड़वा सच न बनता चला जाये, यह जिम्मेदारी हम सब पर है. ‘मां’ के त्याग, निश्छल प्रेम, समर्पण को नमन करते हुए हम यहां दो ऐसे उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जो हमें रोशनी दिखाते हैं.

कर्ज लेकर पढ़ाया अपने लाडलों को

– आनंद मिश्र –
जमशेदपुर : करीब सात वर्ष पहले जब बच्चे छोटे थे, तब बागबेड़ा के गाढ़ाबासा निवासी राधेश्याम जायसवाल चल बसे. परिवार की माली हालत चरमरा गयी. बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होने की नौबत आ गयी. ऐसे में उनकी धर्मपत्नी मंजू देवी ने हिम्मत का परिचय दिया और बच्चों की जिंदगी संवारने में जुट गयीं.

सबसे पहले सरस्वती शिशु विद्या मंदिर प्रबंधन से मिल कर बड़े बेटे हरिओम की स्कूल फीस माफ करायी. इसके साथ ही पुराने कपड़ों की खरीद-बिक्री का व्यवसाय शुरू किया और अपने तीन बच्चों की पढ़ाई जारी रखी.

कठिन परिस्थितियों में भी बच्चों की पढ़ाई में पैसों की कमी को बाधक नहीं बनने दिया. बड़े बेटे ने 2011 में मैट्रिक करने के बाद झारखंड पॉलिटेक्निक की परीक्षा पास की. तब दाखिले के लिए करीब 20 हजार रुपये कर्ज लिये. इस बीच उसने टाटा स्टील अप्रेंटिस की प्रवेश परीक्षा भी पास कर ली.

वर्तमान में हरिओम अप्रेंटिस कर रहा है. वहीं मंझला पुत्र हरिशंकर भी मां की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश में लगा है. इस वर्ष मैट्रिक की परीक्षा में 434 अंक हासिल कर वह स्कूल टॉपर रहा. उसने बागबेड़ा कॉलोनी स्थित इंदिरा विद्या ज्योति हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा दी थी. छोटे बेटे की भी पढ़ाई जारी है.

मां ने हमारी पढ़ाई में कभी अड़चन नहीं आने दी. अपने सुख और सपनों को भूल कर हमेशा हमारे बारे में सोचती हैं. पिता के देहांत के समय मैं छोटा था, लेकिन मकान मालिक व अन्य लोगों ने भी हमें सहयोग किया. पढ़-लिख कर कामयाब इनसान बनना और मां के सपनों को साकार करना हमारा लक्ष्य है.
हरिशंकर जायसवाल, छात्र

आया का काम कर करायी इंजीनियरिंग

– रीमा डे –
जमशेदपुर : मैं अनीता नंदी, उस मां की बेटी हूं. जिन्होंने अपने सपने, अपनी इच्छाएं, अपनी खुशियों को अपने बच्चों पर न्योछावर कर दिया. आज उन्हीं के त्याग और समर्पण का परिणाम है कि मेरा भाई कटक (ओड़िशा) में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. छोटा भाई मैट्रिक में 90 प्रतिशत अंक लाकर प्लस टू की पढ़ाई कर रहा है और मैं जेवियर्स इंग्लिश स्कूल में 11 वीं कक्षा की कॉमर्स शिक्षिका हूं.

मेरी मां गोविंद विद्यालय तामुलिया में आया का काम करती है. उसी विद्यालय में पापा भी पीउन हैं, लेकिन पापा के आय से जब घर व हमारी पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल हो गया तब मां ने आया की नौकरी शुरू की. मां का मायका समृद्ध है लेकिन शादी मध्यवर्गीय परिवार में हुई, जिसके चलते हमारे पालन पोषण में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. मां की जिंदगी में ऐसे कई मोड़ आये जब उनको अपनी इच्छा का त्याग करना पड़ा.

मां ने बाकी दुनिया देखी ही नहीं

घर की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए मां पूरी तरह से स्कूल और घर के लिए समर्पित हो गयीं. सगे- संबंधी, पर्व-त्योहार व शादी-पार्टी सभी से खुद को दूर रखा. कह सकते हैं कि बच्चों की एक इच्छा के आगे अपने सुख का त्याग कर दिया. मैट्रिक की पढ़ाई के बाद कॉलेज आने-जाने के लिए मां ने अपने गहने बेच कर मेरे लिए स्कूटी खरीदी. आया का काम कर घर लौटने के बाद वह घर में मूढ़ी भूंज कर बेचा करती हैं.

खुद के लिए कभी कुछ नहीं खरीदा

मुङो याद नहीं आता कि मां ने अपने लिए कभी कुछ खरीदा हो. यहां तक कि एक साड़ी भी नहीं. मां के लिए मह जो लाते हैं, वह खुशी-खुशी स्वीकार कर लेती है. गांव की जमीन बेच कर तथा घर की जमा पूंजी भाई की पढ़ाई में लगा दी. वो कहती हैं, मेरे लिए मेरे बच्चे ही सब कुछ हैं.

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