दोस्त के इलाज में लगा दी पूरी कमाई
– आनंद मिश्र –
जमशेदपुर : जंबू टावर निवासी राजीव कुमार और महेश प्रसाद दोस्ती की मिसाल हैं. गत वर्ष एक सड़क दुर्घटना में राजीव के मित्र व कारोबार में साङोदार महेश प्रसाद गंभीर रूप से घायल हो गये थे. उनके सिर में मल्टीपल हेड इंज्यूरी थी.
महेश प्रसाद के ब्रेन की सजर्री में करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च हो गये, पर सुधार नहीं हुआ. चिकित्सकों की सलाह पर राजीव ने 5.85 लाख रुपये किराया देकर एयर एंबुलेंस से अचेत महेश प्रसाद को अपोलो अस्पताल दिल्ली भेजा. राजीव के पास करीब आठ लाख रुपये थे.
यह जमा पूंजी महेश प्रसाद को दिल्ली भेजने तक में खर्च हो गये. जहां–जहां कारोबार से संबंधित रुपये बाकी थे, दोस्त की जिंदगी बचाने में लगा दी. अपोलो में चिकित्सकों ने ब्रेन की पुन: सजर्री करने की सलाह दी. हाथ खाली होते हुए भी राजीव ने ब्याज पर 20 लाख रुपये कर्ज लिया, दिल्ली जाकर ऑपरेशन कराया.
करीब 45 दिनों तक कोमा में रहने के बाद वहां से महेश प्रसाद की छुट्टी हुई. वहां से उन्हें जंबू टॉवर स्थित आवास पर ले आये. अब भी महेश प्रसाद कुछ कर नहीं सकते, सिर्फ जीवित हैं. राजीव बताते हैं कि उन्हें इतने भर से ही सुकून है कि उनका दोस्त उनके साथ है.
वही तो भाभी की जमा पूंजी है
जब महेश अपोलो में थे तब उनकी पत्नी प्रतिमा देवी ने अपने जेवरात, किसान विकास पत्र आदि बेच कर सात–आठ लाख रुपये जुटा लेने का मन बनाया था. जब इसकी जानकारी मिली, तो राजीव ने मना कर दिया. यह कहते हुए कि वही उनकी जमा पूंजी है, उसे बचा कर रखें.
आज भी उठा रहे खर्च
राजीव आज भी महेश प्रसाद के घर का सारा खर्च वहन करते हैं. उन्होंने बताया कि अभी उनके घर में कमानेवाला कोई नहीं है. ऐसे में इस परिवार का सहारा कौन बनेगा. अब भी प्रतिमाह इलाज में करीब 15 हजार रुपये खर्च होते हैं.
एक डैमेज है, मुङो तो सब पता है. वह मौजूदा स्थिति में भी हमारे सामने रहे, तो मैं सब कुछ कर लूंगा. मैंने जो भी खर्च किया उसकी परवाह नहीं है. क्योंकि मैं सही सलामत हूं. मेहनत करूंगा तो पैसे आयेंगे ही, लेकिन जान चली गयी, तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता.
राजीव कुमार
हमारी हिम्मत टूट चुकी थी. अब भी क्या है, लेकिन मैं मानती हूं कि आज भी दुनिया में इंसानियत और दोस्ती का फर्ज अदा करनेवाले हैं.
प्रतिमा देवी, महेश प्रसाद की पत्नी
पांच दोस्तों का ठेला आज बना फूड चेन
– मनीष सिन्हा –
जमशेदपुर : छह वर्ष पूर्व अलग–अलग शहर के पांच दोस्तों ने कुछ नया करने की चाहत में मुंबई के वासी इलाके में नये तरह के डोसे की दुकान की शुरुआत की. इन दोस्तों द्वारा तैयार किया जानेवाला बिना आलू के 151 तरह के डोसे का जादू मुंबई के साथ–साथ जमशेदपुर में भी चल रहा है. मुंबई से शुरुआत करने के बाद पांचों ने जहां–जहां इसकी शुरुआत की वहां जाकर व्यवसाय जमाने में सभी ने एक–दूसरे की मदद की.
दोस्तों द्वारा शुरू किया गया यह व्यवसाय इस समय मुंबई और जमशेदपुर के अलावा देश के कई हिस्सों में चल रहा है. किसी शहर में यह डोसा किंग, तो किसी शहर में डोसा हट के नाम से इन्हें जाना जाता है.
जमशेदपुर में इसके संचालक सुदीप दत्ता बताते हैं कि वे वर्ष 2007 में अपने मित्रों के साथ मुंबई गये थे. मुंबई में इंदौर के मुकेश, गोरखपुर के विनोद, उत्तर प्रदेश के ही राजकुमार एवं मणिपुर के अंगुर अली से दोस्ती हुई. अक्सर जब वे खाने के लिए ठेले के पास जाते थे, तो डोसा खाने आने वाले लोग कुछ नये की मांग रखते थे. लोगों की इस मांग को देखते हुए पांचों दोस्तों ने मिल कर कुछ नया करने का सोचा.
कुछ विदेशी कुछ देसी नुस्खा अपना कर बिना आलू का डोसा तैयार करने का निर्णय लिया. यह नुस्खा चल पड़ा और लोगों को पसंद आने लगा. डिमांड बढ़ने पर मुंबई में दो अन्य स्थानों में इसे खोला गया.
वहां से सभी दोस्त अपने–अपने शहर में लौट आये. सभी ने अपने–अपने शहर में इस व्यवसाय की शुरुआत की. हरेक का व्यवसाय जमाने में सभी दोस्तों ने एक–दूसरे की मदद की. ढाई वर्ष पूर्व उन्होंने साकची बंगाल क्लब से जुबिली पार्क जाने वाले रोड किनारे डोसा हट की शुरुआत की. साकची के बाद सोनारी में भी इसकी शुरुआत हुई.
दोस्तों ने बर्तन भी धोये
बहरागोड़ा के जगन्नाथपुर के एमएस दरकली के रहने वाले सुदीप दत्ता ने बताया कि उनके ग्रुप में शामिल सभी दोस्त आर्थिक रूप से कमजोर थे. खुद उनके पिता किसान हैं. घर की आर्थिक स्थिति को देख कर काफी कम उम्र में सिक्यूरिटी गार्ड का काम किया. कई दूसरी जगहों पर भी काम किया.
इसके बाद मुंबई गया और दोस्तों के साथ मिल कर इस कारोबार की शुरुआत की. शुरुआती दिनों में सबने मिल कर बरतन तक धोये. आज जो मुकाम हासिल किया है, वह अपने दोस्तों की ही वजह से.