जमशेदपुर: जोदि तोर डाक सुने केउ ना आसे, तोबे एकला चोलो रे..कविगुरु रचित यह कविता न केवल अंधेरे से घिरे मन में प्रकाश की ज्योत जलाता है, बल्कि अंतर्रात्मा में छुपे अकेलेपन के डर को भी खत्म कर देता है. कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं की प्रासंगिकता हर पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी थीं, आज भी है और हमेशा रहेंगी.
उक्त बातें टाटा स्टील के एमडी एचएम नेरुरकर ने टैगोर सोसाइटी ऑफ जमशेदपुर द्वारा तैयार किये रवींद्र संग्रहालय के उद्घाटन समारोह में कही. उन्होंने कहा कि टैगोर सोसाइटी ऑफ जमशेदपुर ने इस शहर में कला और संस्कृति को जीवंत रखा है और आज रवींद्र संग्रहालय का निर्माण कर झारखंड को नयी पहचान देकर इसकी गरिमा को बढ़ाया है.
उन्होंने सोसाइटी के इस प्रयास की सराहना की. समारोह में उनकी पत्नी व समाजसेवी सुरेखा नेरुरकर भी उपस्थित थीं. इससे पूर्व बतौर मुख्य अतिथि श्री नेरुरकर ने संग्रहालय का फीता काट कर उद्घाटन किया तथा सोसाइटी के सदस्यों के साथ संग्रहालय में रखे गये रवींद्र नाथ ठाकुर की रचनाएं, पेंटिंग एवं उनके जीवन से संबंधित तथ्यों का अवलोकन किया. कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए टैगोर सोसाइटी के सचिव आशीष चौधरी ने कहा कि आनेवाली पीढ़ी, कविगुरु को जान सके उनसे प्रेरणा ले सके इसी उद्देश्य से रवींद्र संग्रहालय की स्थापना की गयी. उन्होंने कहा कि संग्रहालय में कवि गुरु से जुड़ी घटनाओं की तसवीर, उनके हस्त लिखित लेख, पत्र, उनके जीवन के रोचक पहलू एवं उसके विवरण के साथ-साथ शांति निकेतन में बिताये गये दिनों के साथ-साथ जीवन के अंतिम दिनों के दुर्लभ तस्वीरें है.
निर्माण में जिनका रहा योगदान
संग्रहालय के निर्माण में विश्वभारती के तत्कालीन अध्यक्ष नीलांजन बंधोपाध्याय ने अपने टीम के साथ आकर संग्रहालय की रूप रेखा तैयार की है. इस संग्रहालय के निर्माण में तत्कालीन टाटा स्टील कर्मी सुजीत सेनगुप्ता का काफी योगदान रहा. उनकी दादी को कविगुरु द्वारा लिखे हस्तलिखित पत्र संग्रहालय में प्रेषित किया गया है.