जमशेदपुर: चुनाव आयोग और जिला प्रशासन भले ही दावा करता हो कि चुनाव में हर व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए सारे उपाय किये जा रहे हैं, लेकिन हकीकत में सारे दावे झूठे साबित हो रहे हैं.
मानगो के आजादनगर 10 बी निवासी विकलांग (दोनों पैरों से) मोहम्मद हबीब अहमद दोपहर एक बजे पब्लिक वेलफेयर मिडिल उर्दू हाई स्कूल में अपने व्हील चेयर से पहुंचा. उसके हाथ में मतदान का परचा था. वह परचा लेकर मतदान केंद्र से करीब आधा किलोमीटर पर बनाये गये हेल्प सेंटर में पहुंचा. जहां उनको बताया गया कि उसी केंद्र में उसको वोट डालना है और उसका नाम 231 नंबर बूथ पर है.
बेचारा मोहम्मद हबीब किसी तरह रेंगता हुआ 231 नंबर बूथ पर पहुंचा. वहां मौजदू पीठासीन पदाधिकारी को उसने कागज दिया, जिसमें उसने वोट डालने की मांग की. लेकिन उसका नाम वहां नहीं था. इसके बाद उसको 232 नंबर बूथ पर भेज दिया गया, जो करीब दस सीढ़ियों को पार करने के बाद था. वह किसी तरह सीढ़ियों को पार करता हुआ आगे बढ़ा और बूथ नंबर 232 पहुंचा.
वहां जब पहुंचा और परचा दिया तो वहां नाम था. वहां नाम देखकर वह संतुष्ट हो गया. इसके बाद वह सीधे मतदान करने के लिए आगे बढ़ा और बटन दबाकर अपने लोकतंत्र के सबसे बड़े अधिकार का प्रयोग कर लिया. उसकी मतदान करने की जिद्द और जद्दोजहद ने दो संदेश एक साथ दिया. एक यह कि अगर कोई व्यक्ति इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनता है तो उसके लिए मोहम्मद हबीब अहमद बड़ा उदाहरण है. दूसरा संदेश यह कि हालात किस कदर बदतर है और विकलांगों के लिए जिला प्रशासन ने कैसी व्यवस्था कर रखा है.