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शहीद फेदलिस एक्का के परिवार को नहीं मिली नौकरी, जीएनएम की डिग्री लेकर भटक रही बेटी, प्रशासन ने अंबेडकर आवास का पैसा भी रोका

Jharkhand news, Gumla news : श्रीलंका में वर्ष 1987 में शहीद हुए फेदलिस एक्का के परिवार के किसी भी सदस्य को नौकरी नहीं मिली है. नौकरी के लिए परिवार के सदस्य सरकारी बाबुओं के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई इनका दुखड़ा नहीं सुन रहा है. खेती- बारी से परिवार की जीविका चल रहा है. यहां तक कि अंबेडकर आवास योजना का पैसा भी प्रशासन ने रोक दिया है. प्रथम किस्त में मात्र 26 हजार रुपये मिले थे, जिससे मात्र दीवार खड़ी हुई. पैसा रूकने से आवास का काम भी बंद हो गया. डेढ़ साल से परिवार के लोग अंबेडकर आवास का पैसा मांग रहे हैं, लेकिन प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है. अभी शहीद के परिजन पुरानी मिट्टी के घर में रहते हैं. यहां तक कि शहीद के गांव की भी स्थिति खराब है.

Jharkhand news, Gumla news : गुमला (दुर्जय पासवान) : श्रीलंका में वर्ष 1987 में शहीद हुए फेदलिस एक्का के परिवार के किसी भी सदस्य को नौकरी नहीं मिली है. नौकरी के लिए परिवार के सदस्य सरकारी बाबुओं के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई इनका दुखड़ा नहीं सुन रहा है. खेती- बारी से परिवार की जीविका चल रहा है. यहां तक कि अंबेडकर आवास योजना का पैसा भी प्रशासन ने रोक दिया है. प्रथम किस्त में मात्र 26 हजार रुपये मिले थे, जिससे मात्र दीवार खड़ी हुई. पैसा रूकने से आवास का काम भी बंद हो गया. डेढ़ साल से परिवार के लोग अंबेडकर आवास का पैसा मांग रहे हैं, लेकिन प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है. अभी शहीद के परिजन पुरानी मिट्टी के घर में रहते हैं. यहां तक कि शहीद के गांव की भी स्थिति खराब है.

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शहीद फेदलिस एक्का के परिवार को नहीं मिली नौकरी, जीएनएम की डिग्री लेकर भटक रही बेटी, प्रशासन ने अंबेडकर आवास का पैसा भी रोका 3
शहीद का अंतिम संस्कार श्रीलंका में ही हुआ था

शहीद फेदलिस एक्का का गांव पालकोट प्रखंड के देवगांव में है. फेदलिस एक्का सीअरपीएफ-58 के अधिकारी थे. सीआरपीएफ द्वारा इन्हें शांति वार्ता के लिए श्रीलंका भेजा गया था. जहां वे 10 अक्तूबर, 1987 को शहीद हो गये थे. उस समय श्रीलंका से शव लाना मुश्किल था. इस कारण उनके शव को गुमला नहीं लाया जा सका और अंतिम संस्कार श्रीलंका में ही कर दिया गया. परिजन अंतिम बार शहीद का चेहरा भी देख नहीं सके. बस यादगारी में सीआरपीएफ-58 बटालियन द्वारा देवगांव में शहीद की प्रतिमा स्थापित कर दी गयी. जहां हर साल शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है. लेकिन, आज तक शहीद के नाम पर कोई सुविधा नहीं मिली.

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श्रद्धांजलि देने से पेट नहीं भरता : इमिलिया एक्का

शहीद की पत्नी इमिलिया एक्का ने कहा कि पति की मौत के बाद पेंशन मिलना शुरू हुआ. लेकिन, सरकार की तरफ से जो सरकारी सुविधा मिलनी चाहिए. वह अभी तक नहीं मिली है. घर की स्थिति भी ठीक नहीं है. कहती हैं कि शहीद के नाम पर श्रद्धांजलि देने से पेट नहीं भरता है. एक साल पहले बेटी के साथ गुमला डीसी से मिलकर पक्का मकान, शौचालय, सरकारी नौकरी देने की मांग की थी. इसमें सिर्फ 12 हजार रुपये वाला ग्रामीण शौचालय बना. इसके अलावा किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिली है. हर बार आश्वासन मिला, लेकिन समस्या दूर नहीं हुई है.

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शहीद की बेटी बसंती एक्का ने कहा कि पूर्व में ही डीसी को ज्ञापन सौंपी हूं. जिसमें कहा है कि वह नर्सिंग का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है. अभी वह नौकरी की तलाश कर रही है, लेकिन जीएनएम में नौकरी नहीं मिल रही है. उन्होंने डीसी से सरकारी सुविधा के अलावा जीएनएम में नौकरी दिलाने की मांग की है. बसंती कहती हैं कि अगर घर के किसी एक सदस्य को नौकरी मिलती है, तो घर की सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा. शहीद के पुत्र संतोष एक्का ने कहा कि मेरे पिता देश के लिए जान दिये, लेकिन उस वीर सपूत के परिवार को ही सरकार भूल गयी. मैं खेती- बारी करता हूं. मेरी मां, बहन एवं पत्नी इस कार्य में हाथ बंटाते हैं. खेती-बारी से जो आमदनी होती है. उसी से परिवार का जीविका चल रहा है.

Posted By : Samir Ranjan.

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