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न स्कूल भवन, न एमडीएम, कैसे पढ़ेंगे बच्चे
बिशुनपुर प्रखंड के नक्सल प्रभावित तीन स्कूल जिलपीदह, गोबरसेला व हरैया में भवन नहीं है. विभाग ने एमडीएम भी शुरू नहीं किया है. आजादी के इतने दिन बाद जनवरी में इन गांवों के बच्चों ने स्कूल जाने का सपना देखा था. परंतु शिक्षा विभाग की पहल नहीं होने से बच्चों का सपना पूरा होता नहीं […]
बिशुनपुर प्रखंड के नक्सल प्रभावित तीन स्कूल जिलपीदह, गोबरसेला व हरैया में भवन नहीं है. विभाग ने एमडीएम भी शुरू नहीं किया है. आजादी के इतने दिन बाद जनवरी में इन गांवों के बच्चों ने स्कूल जाने का सपना देखा था. परंतु शिक्षा विभाग की पहल नहीं होने से बच्चों का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है.
दुर्जय पासवान
गुमला : बिशुनपुर प्रखंड के नक्सल प्रभावित तीन स्कूल जिलपीदह, गोबरसेला व हरैया (प्राथमिक विद्यालय) के 250 बच्चे कैसे पढ़ाई करें? इन तीनों स्कूलों का अपना भवन नहीं है. मध्याह्न भोजन भी नहीं बनता है. वर्ष 2016 के जनवरी माह में आजादी के 69 वर्ष बाद गांव में स्कूल खुलने की खुशी थी. परंतु विभागीय लापरवाही के कारण बच्चों की पढ़ाई का सपना टूटता नजर आ रहा है.
यह वही क्षेत्र है, जहां से नक्सली बच्चों को उठा कर ले जाते रहे हैं. अगर बच्चे शिक्षा से नहीं जुड़ेंगे, तो नक्सली इसका गलत फायदा उठायेंगे. दिलचस्प बात यह है कि जिलपीदह स्कूल में आदिम जनजाति बच्चों का नामांकन है. सरकार विलुप्त हो रही जाति के बच्चों को संपूर्ण शिक्षा देने में नाकाम साबित हो रही है. इन तीनों स्कूलों के मामले में प्रशासन कोई प्रयास नहीं कर रहा है. कहीं बच्चे पढ़ाई से वंचित होने के बाद नक्सलियों द्वारा उठा कर ले लाने के डर से माता -पिता के साथ पलायन नहीं कर जायें.
आश्वासन में ही बीत गया आठ माह
आठ माह पहले तीनों स्कूल एक साथ शुरू हुआ था. विभाग ने जल्द स्कूल भवन बनवाने आैर एमडीएम शुरू करने का आश्वासन दिया था. इसके लिए स्कूल के एचएम का बैंक खाता नंबर भी लिया गया. परंतु सिर्फ आश्वासन में ही आठ माह गुजर गया. डीएसइ गनौरी मिस्त्री ने भी कभी पहल नहीं की.
तीनों गांवों की स्थिति
बिशुनपुर प्रखंड से जिलपीदह 40 किमी, गोबरेसला 30 किमी व हरैया 35 किमी दूर है. तीनों गांव जंगल व पहाड़ों के बीच है. गांव तक जाने के लिए कच्ची सड़क व पगडंडी है. गरीबी इस क्षेत्र की पहचान है. बरसात में लोग खेती करते हैं. बरसात खत्म होते ही फसल तैयार होने के बाद लोग दूसरे राज्य में रोजगार के लिए पलायन कर जाते हैं. तीनों गांव बनालात एक्शन प्लान में शामिल है. इसके बावजूद गांवों में रोजगार, विकास व शिक्षा की सुविधा नहीं है.
शिकायत की, दूर नहीं हुई
तीनों स्कूलों में दो- दो शिक्षक कार्यरत हैं. परंतु इन लोगों को वेतन मिलना शुरू नहीं हुआ है. शिक्षकों ने कई बार बीपीओ, बीइइओ व डीएसइ को आवेदन देकर स्कूल की समस्या से अवगत कराया, लेकिन अधिकारियों ने कोई पहल नहीं की.
पेड़ के नीचे क्लास चलती है
स्कूल बंद न हो जाये और बच्चों का मन पढ़ाई से उब नहीं जाये, इसलिए शिक्षक गांव के ही किसी व्यक्ति के घर में स्कूल चलाते हैं. कभी इस घर में तो कभी उस घर में पढ़ाई होती है. जिस दिन किसी का कमरा खाली नहीं मिला, तो पेड़ के नीचे क्लास चलती है.
स्कूल के बारे में डीएसइ को जानकारी नहीं है
गुमला डीएसइ गनौरी मिस्त्री को जानकारी भी नहीं है कि जिलपीदह, गोबरसेला व हरैया गांव में स्कूल भी है. उन्होंने बताया कि वहां कोई स्कूल नहीं है. पूरी जानकारी देने के बाद कहा कि वहां कैसे स्कूल चल रहा है.
ऐसे स्कूल को तो बंद हो जाना चाहिए. बाद में उन्होंने कहा कि मैं देख लेता हूं. जांच करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है. डीएसइ ने कहा कि गुमला जिले में 113 स्कूल को बंद करना है. इसमें 95 स्कूल बंद हो गया है. 18 स्कूल की जांच चल रही है. जांच के बाद इन 18 स्कूलों को भी बंद कर देंगे. अगर बंद होनेवाली सूची में इन तीनों स्कूलों का नाम है, तो इसकी जानकारी लेनी होगी.
किस स्कूल में कितने बच्चे
जिलपीदह स्कूल : 61 बच्चे
गोबरसेना स्कूल : 45 बच्चे
हरैया प्राथमिक स्कूल : 61 बच्चे
स्कूल की समस्या से विभाग को अवगत कराया गया है, लेकिन अभी तक भवन नहीं बना है. एमडीएम भी शुरू नहीं हुआ है. अभी वैकल्पिक रूप से गांव के ही किसी व्यक्ति के घर में कमरा खाली मिलने पर पढ़ाते हैं.
सुनील भारती, शिक्षक, जिलपीदह स्कूल
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