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बैल बेच कर चावल खरीदा, तब घर का चूल्हा जला

गुमला : घाघरा प्रखंड की अरंगी पंचायत में कच्चापारा गांव है. इस गांव में विधवा सुमी उरांव अपने तीन बच्चों के साथ रहती है. इस परिवार को किसी प्रकार की सरकारी सुविधा नहीं मिली है. गरीबी व आर्थिक तंगी के कारण सुमी के दो बेटे प्रदीप उरांव व सुनेश्वर उरांव ने पढ़ाई छोड़ दी. सात […]

गुमला : घाघरा प्रखंड की अरंगी पंचायत में कच्चापारा गांव है. इस गांव में विधवा सुमी उरांव अपने तीन बच्चों के साथ रहती है. इस परिवार को किसी प्रकार की सरकारी सुविधा नहीं मिली है. गरीबी व आर्थिक तंगी के कारण सुमी के दो बेटे प्रदीप उरांव व सुनेश्वर उरांव ने पढ़ाई छोड़ दी. सात साल की बहन धनिया कुमारी सिर्फ स्कूल जाती है.

सुमी ने कहा कि सरकार की तरफ से न तो विधवा पेंशन मिलती है और न ही राशन कार्ड बना है. एक माह पहले घर में खाने के लिए कुछ नहीं था. इसलिए खेत जोतने के लिए खरीदे गये दो बैल को 20 हजार रुपये में बेचना पड़ा. बैल बेच कर चावल खरीदा. इसके बाद अभी घर की जीविका चल रही है. सुमी ने कहा है कि जबतक चावल है, तबतक जीविका चल रही है. चावल खत्म होने के बाद फिर भूखे रहना पड़ेगा.

उसने कहा कि कई बार विधवा पेंशन व राशन कार्ड के लिए प्रशासन से गुहार लगायी, लेकिन किसी ने समस्या दूर करने की पहल नहीं की. प्रदीप उरांव व सुनेश्वर उरांव ने कहा कि घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए हमलोगों ने ईंट भट्ठा में मजदूरी करने का मन बनाया, ताकि पैसा कमा कर मां व छोटी बहन की परवरिश कर सके.
लेकिन हमें नाबालिग बता कर प्रशासन काम भी करने नहीं दे रहा है. प्रदीप ने कहा कि उसके पिता बंगाली उरांव का दो साल पहले निधन हो गया है. उनके दोनों हाथ नहीं थे. दोनों भाईयों ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी और पिता का हाथ बंटाते थे. लेकिन पिता की मौत के बाद सब कुछ खत्म हो गया. पढ़ाई भी गयी, घर की पूंजी भी खत्म हो गयी है. अब प्रशासन से मदद की आस है.
खपिया गांव में रोजगार नहीं, पलायन मजबूरी : घाघरा के खपिया गांव की स्थिति भी खराब है. इस गांव में रोजगार नहीं है. मनरेगा से काम नहीं चल रहा है. मजबूरी में इस क्षेत्र के लोग पलायन करने को विवश हैं. गांव के चार लड़के कुछ दिन पहले ईंट भट्ठा में कमाने जा रहे थे, जिसे चाइल्ड लाइन ने रोका.
अब ये लड़के गांव में हैं, लेकिन चिंता इस बात की है कि काम नहीं करेंगे, तो घर परिवार की जीविका कैसे चलेगी. मुनी देवी, डहरी देवी व रवि उरांव ने कहा कि गांव के हर परिवार से एक-दो सदस्य दूसरे राज्य मजदूरी करने जाते हैं. गांव में 75 घर है. गरीबी व बेरोजगारी के अलावा गांव में सरकारी सुविधाओं का भी लाभ नहीं मिल रहा है.

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