गुमला: गुमला प्रखंड परिसर में आदिवासी विश्रामागार बना है. लेकिन यह भवन किसके उपयोग के लिए है. अब भी यह सवाल बना हुआ है. क्योंकि नाम आदिवासी विश्रामागार दिया गया है, परंतु भवन का उपयोग निजी काम के लिए हो रहा है. यह भवन मेसो (आइटीडीए) विभाग से 25 दिसंबर 1988 में बना था. भवन का उदघाटन बिहार राज्य के मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद व राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री उमा पांडेय ने किया था. जब भवन बना था, उस समय कहा गया था.
भवन में दूर-दराज गांव से आनेवाले आदिवासी ठहरेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बिना उपयोग के आज भवन बेकार हो गया है. मेसो विभाग ने कभी भवन की मरम्मत कराने का प्रयास नहीं किया. जिसका नतीजा है कि आज भवन की छत से बारिश में पानी टपकता है. खिड़की बेकार हो गये है. पूरा भवन भूत बंगला दिखता है. इस भवन में एक कर्मचारी 10 वर्षों से रह रहा है. एक भवन में सरकारी कामकाज संचालित हो रहा है. दो अन्य कमरे है, जो बेकार है. आदिवासी विश्रामागार के परिसर में छह सरकारी गाड़ी वर्षों से सड़ रहे है. इन गाड़ियों की कीमत करीब 50 लाख रुपये होगी. लेकिन टायर पंक्चर होने व स्टार्ट करने की समस्या होने पर सरकारी बाबुओं ने गाड़ियों को सड़ने के लिए रख दिया. बिना उपयोग के आज सभी गाड़ियां खटारा हो गयी है. कबाड़ी के अलावा और इस गाड़ी का कोई उपयोग नहीं है.
विश्रामागार का नये सिरे से निर्माण हो : बंधु
पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि आदिवासी विश्रामागार अगर सरकार व प्रशासन चालू कर दें, तो यहां कम खर्च पर आदिवासियों को ठहरने का अच्छा साधन हो सकेगा. गुमला जिला प्रशासन की उपेक्षा से आज आदिवासी विश्रामागार बेकार पड़ा है. इसकी मरम्मत व नये सिरे से निर्माण कर आदिवासी विश्रामागार का केयर टेकर किसी आदिवासी बेरोजगार युवक को बना देने से भवन की भी देख-रेख होगी और बेरोजगारों को रोजगार मिल सकेगा. लाखों रुपये के भवन को इस प्रकार बेकार नहीं छोड़ा जा सकता है. मेसो विभाग इस पर ध्यान दें. आदिवासी छात्र संघ गुमला के जिलाध्यक्ष अशोक कुमार भगत ने कहा कि आदिवासी विश्रामागार को चालू करने की मांग को लेकर मेसो विभाग के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे. इसके बाद भी भवन को ठीक नहीं किया गया, तो मजबूरन विभाग का घेराव किया जायेगा.