इसमें कई मौत पर अस्पताल प्रशासन की लापरवाही सामने आयी है. इसमें गुमला प्रशासन द्वारा जांच करायी गयी है, जिसमें अस्पताल दोषी मिला है. लेकिन रांची से आयी स्वास्थ्य विभाग की टीम की जांच ठीक इसके विपरीत है.
सरकार ने स्वास्थ्य विभाग की खामियों की जांच अपने ही विभाग के अधिकारी से करायी, तो जांच टीम ने कई मौतों पर अंधविश्वास का ठिकरा फोड़ कर मामले को दबाने का प्रयास किया है. इधर, लगातार अस्पताल में बच्चों की मौत से अब लोग डरने लगे हैं.
- 21 जुलाई को सिसई प्रखंड में वज्रपात से झुलसी बच्ची को रेफरल अस्पताल में भरती कराया गया. डॉक्टर नहीं थे. इलाज नहीं हुआ. अस्पताल में बच्ची ने दम तोड़ दिया. ग्रामीणों ने हंगामा किया था.
- छह अगस्त को बसिया प्रखंड के केदली गांव निवासी करण सिंह के आठ वर्षीय पुत्र सुमन सिंह की इलाज व दवा के अभाव में गुमला अस्पताल में मौत हो गयी. शव को गांव ले जाने के लिए एंबुलेंस भी नहीं मिला.
- 16 अगस्त को बसिया प्रखंड के एक धर्मप्रचारक की तीन वर्षीया बेटी को ब्रेन मलेरिया हो गया था. उसे गुमला अस्पताल में भरती कराया गया. उसे खून की आवश्यकता थी. उसी दिन रात को बच्ची की मृत्यु गयी.
- 17 अगस्त को मुरगू करंजटोली गांव में स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में एक महिला की मौत बच्चे को जन्म देने के बाद हो गयी. अंधविश्वास में ग्रामीणों ने उसके पैर में कील ठोक दिया था. बच्चे को किसी ने नहीं छूआ. बाद में बच्चा भी गुमला अस्पताल में मर गया.
- 18 अगस्त को घाघरा प्रखंड के बरांग गांव की एक गरीब मां अपने बीमार बेटे को अस्पताल से गोद में लेकर पैदल घर जा रही थी. 10 किमी पैदल चलने के बाद बच्चे ने मां की गोद में दम तोड़ दिया.
- 20 अगस्त को पालकोट प्रखंड के सिजांग गांव की जानकी देवी के गर्भ में ही उसके बच्चे की मौत हो गयी. डॉक्टरों ने गुमला सदर अस्पताल में मां का ऑपरेशन कर मृत बच्चे को गर्भ से निकालने की जगह उसे रांची रेफर कर दिया. रांची ले जाने के क्रम में ममता वाहन में मां की भी मौत हो गयी.
- 29 अगस्त को सिसई प्रखंड के बरगांव निवासी सुरेश महली व सावित्री देवी का छह वर्षीय पुत्र राजदेव महली की मौत हुई है. राजदेव 14 दिनों से बीमार था. उसे उल्टी हो रही थी.