एनएमसी एक्ट के विरोध . अस्पतालों में डॉक्टरों ने किया कार्य बहिष्कार
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ओपीडी सेवाएं बाधित, मरीज लौटे घर
एनएमसी एक्ट के विरोध . अस्पतालों में डॉक्टरों ने किया कार्य बहिष्कार ओपीडी में रोगियों को नहीं देखे जाने के कारण बैरंग लौटना पड़ा घर महिला, पुरुष व बच्चे रोगी को हुई परेशानी केवल इमरजेंसी सुविधा का ही दिया गया लाभ इलाज के लिए भटकते रहे 222 रोगी गोड्डा : पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत […]
ओपीडी में रोगियों को नहीं देखे जाने के कारण बैरंग लौटना पड़ा घर
महिला, पुरुष व बच्चे रोगी को हुई परेशानी
केवल इमरजेंसी सुविधा का ही दिया गया लाभ
इलाज के लिए भटकते रहे 222 रोगी
गोड्डा : पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत आइएमए के आह्वान पर जिले भर के डॉक्टरों ने मंगलवार को कार्य का बहिष्कार किया. डॉक्टरों ने एमएनसी एक्ट के विरोध में चिकित्सा कार्य से अपने आपको पूरी तरह से अलग रखा. इस कारण महिला, पुरुष व बच्चे रोगियों को काफी परेशानी हुई. जानकारी के मुताबिक करीब 222 रोगी इलाज के लिए इधर-उधर भटकते रहे. सदर अस्पताल में पदस्थापित व प्रतिनियुक्त चिकित्सकों ने आंदोलन को सफल बनाने के लिए एकजुटता का परिचय देते हुए किसी भी रोगी का इलाज नहीं किया है.
आइएमए के सचिव डॉ प्रभा रानी प्रसाद के नेतृत्व में सभी डॉक्टर ओपीडी सेवा को ठप कर मंगलवार को आइएमए भवन में जुटे और विरोध जताया. प्राइवेट क्लीनिक के डॉक्टरों ने भी मरीज का इलाज नहीं किया. वरीय चिकित्सक डॉ अशोक कुमार, डॉ डीके गौतम, डॉ डीके चौधरी, डॉ मंटू कुमार टेकरीवाल, डॉ सीएल वैद्य, डॉ श्याम जी भगत, डॉ उषा सिंह, डॉ टीएस झा आदि शामिल हैं.
प्रभावित रहा ओपीडी, बगैर इलाज के लौटे मरीज : डॉक्टरों द्वारा काला दिवस मनाये जाने और कार्य नहीं किये जाने के कारण सदर अस्पताल का ओपीडी सेवा पूरी तरह से प्रभावित रहा है. ओपीडी का समय नौ से एक बजे तक इलाज कराने आये मरीजों को बगैर इलाज के ही घर लौट जाना पड़ा है. आपातकालीन सेवा के तहत डॉक्टरों ने किया इलाज : डॉक्टरों के कार्य बहिष्कार के बाद भी चिकित्सकों ने मानवता को ध्यान में रख कर अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार, दुर्घटना में घायल मरीजों का इलाज किया.
एनएमसीआइ को हटा कर एनएमसी एक्ट को लागू करने का देश भर में विरोध : डॉ प्रभा : सचिव डॉ प्रभा रानी प्रसाद ने बताया कि एनएमसीआइ को हटा कर एनएमसी एक्ट का विरोध देश भर में डॉक्टरो की ओर से किया गया है. इस कानून को लागू किये जाने से यूनानी चिकित्सकों द्वारा भी अंग्रजी पद्धति से मरीजों का इलाज किया जाने लगेगा. इससे मरीजों को ही जान पर खतरा होगा. जो मरीजों के हित में नहीं है. मरीजों को ही नुकसान होगा.
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