– विजय सिंह –
यूपी व बिहार की सीमा से लगे भवनाथपुर प्रखंड में कभी सघन वन हुआ करता था. आज की तारीख तक लगभग आधे जंगल काटे जा चुके हैं. लकड़ी माफिया की हरकत पर कोई अंकुश नहीं है. 2000 एकड़ वन भूमि पर बस चुकी है आबादी. तमाम कोशिश के बावजूद अब भी रोज कट रहे हैं पेड़.
भवनाथपुर : गढ़वा जिले का भवनाथपुर प्रखंड कभी जंगल के लिए मशहूर था. बिहार एवं यूपी की सीमा से लगे इस प्रखंड में घने जंगल थे. यहां कीमती लकड़ी मिलती थी. जंगली जानवर स्वछंद विचरण करते थे. प्रखंड के सोन एवं पंडा नदी का किनारा जंगल एवं जानवर दोनों के लिए महफूज था.
सघन जंगल के कारण इसमें पैदल चलने में भी लोगों को परेशानी होती थी. लेकिन आज वन माफिया इस प्रखंड को जंगलविहीन बनाने पर तुले हैं. इन माफियाओं के लिए कहीं कोई कानून नहीं है और न ही कोई अधिकारी, जो इन पर लगाम लगा सकें. इसके कारण जंगल का तेजी से सफाया हो रहा है.
बड़े पैमाने पर होती है पेड़ों की कटाई : भवनाथपुर प्रखंड में छोटे–बड़े पेड़ों को मिला कर प्रतिदिन कम से कम एक हजार पेड़ कट रहे हैं. प्रखंड के कैलान, मंगरदह, बरडीहा, फूलवार, करमाही, धागा पहाड़, अरसली के जंगल में वन माफिया एवं लकड़ी बेचनेवाले प्रतिदिन लकड़ी काट रहे हैं.
कम से कम 200 साइकिल से लकड़ी ढोयी जाती हैं. करीब 200 महिला–पुरुष माथे पर लकड़ी ढोकर ले जाते हैं. यह लकड़ी बिक्री हेतु भवनाथपुर एवं टाउनशिप में आती है. जो लकड़ी बिक्री के लिए आती हैं, उनमें सखुआ, धौरा, करम, महुआ, पलाश, गिजन, सलई, पिआर, तेन, चिलबिल आदि की लकड़ी हैं.
ये लोग रोज नये व बिना तैयार हुए पेड़ों को शहर में आकर बेचते हैं, लेकिन इनको रोकनेवाला कोई नहीं है.