चाकुलिया : पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में चारू मजूमदार, असीम चटर्जी, कान्हू सान्याल, जंगल संथाल, संतोष राणा आदि के नेतृत्व में 1967 में शुरू नक्सली आंदोलन ने शीघ्र ही सीमा से सटे चाकुलिया और बहरागोड़ा प्रखंड को अपने आगोश में ले लिया. इस आंदोलन की आंच घाटशिला प्रखंड पर भी पड़ी. कोलकाता प्रेसिडेंसी कॉलेज […]
चाकुलिया : पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में चारू मजूमदार, असीम चटर्जी, कान्हू सान्याल, जंगल संथाल, संतोष राणा आदि के नेतृत्व में 1967 में शुरू नक्सली आंदोलन ने शीघ्र ही सीमा से सटे चाकुलिया और बहरागोड़ा प्रखंड को अपने आगोश में ले लिया. इस आंदोलन की आंच घाटशिला प्रखंड पर भी पड़ी. कोलकाता प्रेसिडेंसी कॉलेज के अनेक छात्र और छात्राएं इस आंदोलन में कूद पड़े. सूदखोर, महाजन और जमींदारों के खिलाफ शुरू नक्सली आंदोलन का चाकुलिया और बहरागोड़ा के बंगाल सीमा से सटे इलाके में खासा प्रभाव रहा. इस आंदोलन को हवा देने के लिए चारू मजूमदार समेत अन्य नेता भी यहां पहुंचे.
नक्सल आंदोलन के प्रथम चरण में नक्सलियों की ओर से आर्म्स लूट और हत्या की पहली घटना का गवाह चाकुलिया बना. रूपुषकुंडी गांव के लैंपस में स्थित पिकेट पर दिन दहाड़े हमला कर नक्सलियों ने बीएमपी के तीन जवानों की हत्या की. इसके बाद थ्री नट थ्री के 13 राइफल लूट ली.
पश्चिम बंगाल सीमा से सटे चाकुलिया में नक्सलियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए रूपुषकंडी में पिकेट बना था. यहां के लैंपस भवन में बीएम के जवान तैनात किये गये थे. कई बुजुर्गों के मुताबिक वर्ष 1968 में इस इलाके में नक्सलियों ने अपनी पैठ जमा ली थी. 1969 में नक्सलियों का सशस्त्र दल दिन दहाड़े यहां पहुंचा. दोपहर के वक्त कई जवान आराम कर रहे थे. नक्सलियों ने पिकेट पर हमला कर तीन जवानों की गला रेत कर हत्या कर दी. 13 राइफलों को लूट कर पश्चिम बंगाल सीमा में प्रवेश कर गये. उस वक्त यह इलका घने जंगलों से भरा था. नक्सली जंगल के रास्ते आये और जंगल के रास्ते ही चले गये.