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चित्रेश्वर धाम का तालाब सूखने से श्रद्धालुओं को परेशानी

बहरागोड़ा : बहरागोड़ा प्रखंड की बहुलिया पंचायत में ओड़िशा,पश्चिम बंगाल और झारखंड सीमा पर स्थित चित्रेश्वर धाम का पौराणिक शिव मंदिर तीन राज्यों के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है. यह शिव मंदिर आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहा है. यहां सुविधाओं का घोर अभाव है. एक शौचालय तक नहीं है. वैसे तो सालों […]

बहरागोड़ा : बहरागोड़ा प्रखंड की बहुलिया पंचायत में ओड़िशा,पश्चिम बंगाल और झारखंड सीमा पर स्थित चित्रेश्वर धाम का पौराणिक शिव मंदिर तीन राज्यों के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है. यह शिव मंदिर आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहा है.

यहां सुविधाओं का घोर अभाव है. एक शौचालय तक नहीं है.
वैसे तो सालों भर यहां भक्तों का मेला लगता है. लेकिन महाशिव रात्रि तथा सावन के महीने में नजारा कुछ और ही होता है. विधायक कुणाल षाड़ंगी की पहल पर इस मंदिर को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की गयी. परंतु विभाग इसकी अनदेखी कर कर रहा है.
अधूरा है सौंदर्यीकरण का कार्य
2008 में पर्यटन विभाग के तहत स्वीकृत मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य अधूरा है. झारखंड पर्यटन विकास निगम लिमिटेड के तहत स्वीकृत योजना का शिलान्यास तत्कालीन विधायक सह झारखंड पर्यटन विभाग समिति के सभापति डॉ दिनेश षाड़ंगी ने 14 दिसंबर 2008 को किया था. लेकिन विभागीय लापरवाही से सौंदर्यीकरण का कार्य अधूरा रह गया.
तालाब सूखने के कगार पर
चित्रेश्वर मंदिर से सटा तालाब सूखने के कगार पर है. तालाब में पानी काफी कम है. शिवरात्रि के दिन श्रद्धालु इसी तालाब में नहा कर दीपक जलाते हैं और पूजा करते हैं. तालाब में पानी कम होने के कारण श्रद्धालुओं को काफी परेशानी होगी. तालाब की सफाई भी नहीं हुई है.
शौचालय हैंड ओवर नहीं
मंदिर परिसर या इसके आसपास शौचालय नहीं है. श्रद्धालुओं के लिए पर्यटन विभाग द्वारा बनाया गया शौचालय आज तक हैंडओवर नहीं किया गया है. शौचालय में पानी की व्यवस्था भी नहीं है. इससे पूजा करने के लिए आये श्रद्धालुओं को काफी परेशानी होती है. महिला श्रद्धालुओं को भारी परेशानी उठानी पड़ती है.
मुख्य द्वारा आज भी अधूरा
2008 में पर्यटन विभाग द्वारा सौंदर्यीकरण का कार्य शुरू किया गया था. परंतु मंदिर का प्रवेश द्वार अधूरा पड़ा हुआ है. सीमेंट का तोरण द्वार तो बनाया गया है. मगर रंगाई-पुताई नहीं हुई है.
चापानलों का ही सहारा
मंदिर परिसर में जलापूर्ति योजना नहीं है. पाइप लाइन से जलापूर्ति नहीं होती है. मंदिर परिसर में गाड़े गये चापानल ही भक्तों का सहारा बने हैं.

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