बीहड़ के ग्रामीणों को सताने लगी मई-जून की चिंता
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मार्च में ही सूखने लगे पहाड़ी झरना व नाला, जल संकट
बीहड़ के ग्रामीणों को सताने लगी मई-जून की चिंता पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के कारण पहाड़ी झरने और नाले सूखने लगे हैं गालूडीह : मार्च के दस्तक देने के साथ ही पहाड़ी झरना और नाला सूखने लगे हैं. इससे पहाड़ों की तलहटी पर बसे बीहड़ गांवों में जल संकट गहराने लगा है. बंगाल सीमा से सटे […]
पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के कारण पहाड़ी झरने और नाले सूखने लगे हैं
गालूडीह : मार्च के दस्तक देने के साथ ही पहाड़ी झरना और नाला सूखने लगे हैं. इससे पहाड़ों की तलहटी पर बसे बीहड़ गांवों में जल संकट गहराने लगा है. बंगाल सीमा से सटे झारखंड के गालूडीह, एमजीएम, घाटशिला थाना क्षेत्र के उत्तरी इलाके के कई बीहड़ गांवों से सटे पहाड़ी झरना सूख गये हैं. उक्त झरनों से निकले नाला भी सूख गये हैं. इससे ग्रामीण परेशान हैं.
सुखना पहाड़ से निकले निशी झरना, बांदरचुआ झरना, पुरनाजोल झरना, लखाइसीनी झरना, फूलझोर झरना सूख गये हैं. उक्त झरनों से कई नाले निकले हैं. जहां लोग नहाते थे, मवेशियों को पानी पिलाते थे. उक्त नाला और झरना के पास खाल (गड्ढा) बनाकर ग्रामीण पीने का पानी लेते थे. झरना और पहाड़ी नाला के सूखने से जल संकट गहरा गया है. ग्रामीण पानी के लिए परेशान हैं.
पशु-पंक्षी और जंगली जानवर भी पहाड़ी झरना सूखने प्यास से भटक रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं फरवरी-मार्च में यह हाल है, तो मई-जून में क्या होगा. गुड़ाझोर के ग्राम प्रधान रामचंद्र सिंह, मिर्गीटांड़ के रवि टुडू, भुुमरू के माधो मुंडा आदि ग्रामीणों कहना है कि पहले ऐसा नहीं होता था. पहाड़ी झरना और नाले नहीं सूखते थे. जंगलों की कटाई और पहाड़ों में खनन होने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ा है. इसके कारण पहाड़ी झरने और नाले सूखने लगे हैं.
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