वरुण वर्मा
शिकारीपाड़ा : एक वक्त था, जब शिकारीपाड़ा के जबरदाहा गांव में निर्मित ढोकरा कला की वस्तुएं आसपास के हाट बाजारों में हाथों-हाथ बिकती थी, तब इस कला की मांग थी और समुचित प्रोत्साहन भी कलाकारों को मिलता था, लेकिन सरकारी उदासीनता की वजह से जादोपेटिया परिवारों का यह पुश्तैनी कलाकारी बंद होने के कगार पर पहुंच चुका है.
जामुगुड़िया पंचायत के जबरदहा गांव में डोकरा कला के तहत पीतल के आभूषण, पाई, सेर, मूर्ति आदि खूब बनते थे, लेकिन इन दिनों न सिर्फ उत्पादन घटा है, बल्कि कलाकारों का रुझान भी इस धंधे के प्रति घटता जा रहा है. यह कुटीर उद्योग सरकारी सहायता के अभाव में दम तोड़ रहा है.वर्तमान समय में इस हस्तकला में लगभग 20 -22 परिवार लगे हुए हैं.
इस कुटीर उद्योग में कलाकार कच्ची सामग्री के रुप में मोम , धूमन, सरसों का तेल, गोबरयुक्त मिट्टी का उपयोग करते हैं. सांचा के लिए मोम, धूमन तथा सरसों के तेल के मिश्रण से तार बनाये जाते हैं .इस तार को मनोनुकुल आकार देकर मिट्टी के सांचे पर डाला जाता है. फिर सांचे के उपर पीतल रखकर भट्टी में पकाया जाता है. पीतल गल के मिश्रण के तार का आकार ले लेता है. इसी पद्धति से विभिन्न प्रकार के आभूषण, घुंघरु, मूर्ति, पाई, सेर आदि निर्मित होता है.