दुमका : काठीकुंड में पावर प्लांट के विरोध में प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारियों पर हुई पुलिस फायरिंग से अपनी आंख गंवाने वाले सरायपानी गांव के आदिवासी युवक शिवलाल सोरेन की सुधि लेने वाला कोई नहीं है.
शिवलाल को इस आंदोलन के दौरान एक आंख में गोली लगी थी. गोली आंखों को फोड़ते हुए उसके मस्तिष्क में धंसी रह गयी. इलाज के दौरान धनबाद, रांची और दिल्ली में उसका ईलाज तो चला, लेकिन गोली नहीं निकाली जा सकी. नतीजा यह हुआ कि उसके दूसरे आंख की रोशनी भी जाती रही.
शिवलाल अब बिना किसी के सहारे कहीं आ-जा भी नहीं सकता. लिहाजा वह किसी तरह का रोजगार भी नहीं कर सकता. जब 6 दिसंबर 2008 को उसे गोली लगी थी, तब वह मैट्रिक का परीक्षार्थी था. दो महीने बाद उसकी परीक्षा थी. जमीन उसके लिए अहम थी. लिहाजा जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर उस विस्थापन विरोधी आंदोलन में वह शामिल हुआ था. बकौल शिवलाल सरकार उसे मुआवजा नहीं दे रही.
उसके परिवार के किसी सदस्य को नौकरी भी नहीं दी. घर में इकलौता कमाने वाला वह था. लेकिन अब वह बेबश है. अलबत्ता हर महीने उसे उक्त मामले में थाने में पहली ही तारीख को हाजिरी देने के लिए पहुंचना पड़ता है.
उसने बताया कि इस आंदोलन में शहीद हुए पंचवाहिनी के सायगत मरांडी व आमगाछी के लुखीराम टुडू के आश्रित को नौकरी तथा परिजनों को मुआवजा मिला, लेकिन पुलिसिया गोली का शिकार बनकर दोनों आंख गंवाने और गोली अंदर रहने से असहनीय पीड़ा सहने को मजबूर होने के बावजूद उसे अथवा उसके परिजन को किसी तरह का मुआवजा नहीं मिला. शनिवार को वह उपायुक्त के दरबार में पहुंचा, उसे अब 24 दिसंबर को आने को कहा गया है.