दुमका. प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन की व्यथा मिटाने के लिए परमात्मा की शरणागत होना ही होता है. परमात्मा के सानिध्य में ही मानव का कल्याण है. धन व विद्या के अभिमान में पड़ कर लोग परमात्मा को भूल जाते हैं और अहंकारी बन जाते हैं, जिससे जीवन का भटकाव होता है. उक्त बातें कानूपाड़ा के आशुतोषनाथ मंदिर प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कथावाचक आचार्य फणिभूषण जी महाराज ने कही. उन्होंने कहा कि जो मनुष्य चिंता का त्याग कर भगवान की भक्ति में चिंतन को बढ़ाता है, उसे परमात्मा का सानिध्य मिलता है और वह परमसुखी हो जाता है. आचार्य श्री भूषण ने कहा कि श्रीकृष्ण के 24 अवतार की लीलाओं का वर्णन सुखदेव ने राजा परीक्षित जी को किया था. श्री भूषण ने कहा कि कलयुग की घटित घटना को देख कर पुराण व शास्त्र के रचियता वेदव्यास जी स्वयं चिंतित थे. उनकी निवृत्ति नारद जी ने की और उपदेश के रूप में उन्होंने बताया कि चिंता को छोड़ कर चिंतन को बढ़ाएं. आचार्य श्री भूषण ने उपस्थित श्रोताओं 24 अवतारों का जिक्र करते हुए ‘इंद्रयारी व्यकुले लोके मृडयंती युगे युगे’अर्थात जब जब देवराज इंद्र पर संकट उत्पन्न होता है, तब तब परमात्मा विभिन्न रूप धारण कर उनके संकट को मिटाते हैं.
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्रपरमात्मा के सानिध्य में मिलता है सच्चा सुख : आचार्य फणिभूषण
दुमका. प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन की व्यथा मिटाने के लिए परमात्मा की शरणागत होना ही होता है. परमात्मा के सानिध्य में ही मानव का कल्याण है. धन व विद्या के अभिमान में पड़ कर लोग परमात्मा को भूल जाते हैं और अहंकारी बन जाते हैं, जिससे जीवन का भटकाव होता है. उक्त बातें कानूपाड़ा […]
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