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नहीं जागे तो घर में बहू की डोली नहीं उतरेगी : आचार्य राजेंद्र

धनबाद: जब जब प्रभु की कथा प्रारंभ होती है, देवता दानव, मानव सभी उनके चरणों में नतमस्तक होते हैं. मानव को सुलभ है भागवत कथा. दुष्ट व्यक्ति मृत्यु शैया पर भी विनाशक बुद्धि रखता है. मानव अपने जीवन की डोर प्रभु के हाथों में सौंप पैर पसार कर सो जाओ. जब प्रभु के हाथों डोर […]

धनबाद: जब जब प्रभु की कथा प्रारंभ होती है, देवता दानव, मानव सभी उनके चरणों में नतमस्तक होते हैं. मानव को सुलभ है भागवत कथा. दुष्ट व्यक्ति मृत्यु शैया पर भी विनाशक बुद्धि रखता है. मानव अपने जीवन की डोर प्रभु के हाथों में सौंप पैर पसार कर सो जाओ. जब प्रभु के हाथों डोर सौंप दी है फिर चिंता की क्या बात.

मौजूदा समय में समाज से चिंतन घट गया है चिंता बढ़ गयी है. यह चिंता आयी कहां से यह शोचनीय विषय है. ये बातें वंृदावन से आये भागवत मर्मज्ञ आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने शंभु धर्मशाला में भक्तों से कही. कथा के तीसरे दिन श्री महाराज ने व्यास गद्दी से भक्तों से कही.

परम गति टारे नहीं टरती : जब तक हम प्रभु के चरणों में समर्पित भाव नहीं रखेंगे भटकते रहेंगे. अपना ज्ञान समाज के लिए प्रभु को मत दिखाओ. वह तो जगत पिता है, जगत के मालिक हैं. परम गति टारने से नहीं टरती है. मृत्यु जिसके हाथ से जब, जिसके द्वारा, जिस स्थान पर लिखी हो उसके हाथों होगी.

सम्मानित व्यक्ति का अपमान ही मृत्यु है : जब सम्मानित व्यक्ति का भरे सभा में अपमान किया जाता है वह बेमौत मारा जाता है. जब गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा मृत्युशैया पर पड़े अपने परम मित्र दुर्योधन से मिलने जाते हैं और आखिरी इच्छा पूछते हैं दुर्योधन कहता है अगर मेरे हाथ में भीम का शीश आये तो मैं चैन से मर सकूंगा. मित्र की इच्छा जान अश्वत्थामा पांडव पुत्रों का वध कर शीश लाकर मित्र को देते हैं. शीश हाथ में लेते ही दुर्योधन जान जाता है यह भीम का शीश नहीं है और मृत्यु को प्राप्त होता है. द्रौपदी कान्हा से न्याय की गुहार लगाती है. कान्हा अजरुन को गीता के ज्ञान से परिचय कराते हैं. अश्वत्थामा से भरी सभा में मणि छीन ली जाती है, तिलक उतार लिये जाते हैं.

कन्या की करें रक्षा : मित्र की मृत्यु होने पर अश्वत्थामा ने यह प्रण किया था वह पांडव के वंश का नामो निशान मिटा देगा और उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के शिशु पर ब्रrास्त्र चला देता है. उत्तरा कान्हा के चरणों में गिर विलाप करने लगती है. अपने गर्भस्थ शिशु की रक्षा की गुहार लगती है. कान्हा ने उत्तरा से कहा पुत्र वधू तुम मेरी तरफ वात्सल्य भाव से निहारो. उत्तरा ने वैसा ही किया. प्रभु अंगूठे के आकार में उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर उसके शिशु की रक्षा करते हैं. आगे चल कर यह बालक परीक्षित के रूप में जाना जाता है. प्रभु ने अश्वत्थामा के ब्रrास्त्र से परीक्षित की रक्षा की थी, लेकिन हमारे समाज में ऐसे कितने अश्वत्थामा है जो पुत्रियों को गर्भ में मार रहे हैं. इनकी रक्षा कौन करेगा. भक्तों जागो अगर नहीं जागे तो न घर में किलकारी गूंजेगी और न ही बहू की डोली उतरेगी.

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