अशोक कुमार, धनबाद : सड़क किनारे धूल से सने मुरझाये पौधे, आम होती बच्चों-बुजुर्गों की सांस फूलने की समस्या, त्वचा की बीमारी, कोलियरी क्षेत्रों की फिजां से आ रही है जलने की बदबू, यह बताने के लिए काफी है कि हम धनबाद में किस प्रदूषित वातावरण में जी रहे हैं.हालांकि हाल के वर्षों में यहां की स्थिति में सुधार हुआ है. लेकिन अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है. इसे रोकने के लिए कई कार्य योजनाएं शुरू की गयी हैं, लेकिन जमीन पर यह कार्य योजना अभी भी नाकाफी साबित हो रही है.
हवा में धूलकण तय मानक से अधिक : पूरे जिले में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह हवा में मौजूद धूलकण है. उसकी मात्रा में दिन प्रति दिन इजाफा दर्ज किया जा रहा है. आज आलम यह है कि शहर के सबसे हरे-भरे क्षेत्रों में पीएम 10 का स्तर अपने तय मानक 100 से हमेशा अधिक रहा है.विशेषज्ञों की मानें तो धनबाद में दो प्रमुख वजह है. पहला कोयला खदान और उसमें लगी आग के साथ इसके खनन के लिए अपनाया जाने वाला अवैज्ञानिक तरीका. वहीं शहरी क्षेत्रों में वाहनों की बढ़ती संख्या और पतली सड़क. इसके साथ-साथ हमारा खुद का लालच और लापरवाही इस आग में घी का काम रहे हैं.
- 2010 में आइआइटी दिल्ली और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में धनबाद देश के प्रदूषित शहरों की सूची में 13वें पायदान पर था.
- 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में धनबाद विश्व का 34वां सबसे अधिक प्रदूषित शहर था.
- इन रिपोर्टों से खुलासा हुआ था कि धनबाद कोयलांचल की हवा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फाइड आदि की मात्रा मानक से काफी अधिक है, जो गंभीर रोग पैदा कर सकते हैं.
देश के प्रदूषित शहरों में हमारा धनबाद शुमार
10 में सीपीसीबी (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) ने अपनी रिपोर्ट में धनबाद को देश के 43 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 13वें स्थान पर था. इसके बाद वर्ष 2011 में डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के प्रदूषित शहरों की एक सूची जारी की, जिसमें भारत के 33 शहरों को भी शामिल थे.
इनमें धनबाद देश में 11वें स्थान और पूरी दुनिया में 34वें स्थान पर था. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने धनबाद में 31 मार्च, 2012 तक किसी भी तरह का उद्योग लगाने पर रोक लगा दी थी.
- शहर के सबसे हरे भरे क्षेत्र में पीएम 10 का स्तर तय मानक से अधिक
- खनन गतिविधियों के साथ बढ़ते वाहन कर रहे आग में घी का काम
- कोयलांचल में इन चार वजहों से बढ़ रहा है वायु प्रदूषण
ओपेन कास्ट माइनिंग
धनबाद की हवा में सबसे अधिक जहर कोयला घोल रहा है. इसकी वजह से लोग सांस और स्कीन से संबंधित गंभीर बीमारियों से पीड़ित होते जा रहे हैं. जिले में अभी सबसे अधिक कोयला का उत्पादन ओपेन कास्ट माइंस से हो रहा है. यही माइंस प्रदूषण का सबसे प्रमुख स्रोत भी साबित हो रही है.
इनके खनन के दौरान होने वाली ब्लास्टिंग की वजह से बड़ी मात्रा में धूलकण हवा में पहुंच इसे प्रदूषित कर रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इसके साथ यहां कोयला और ओवर बर्डेन की अवैज्ञानिक तरीके से होने वाले ट्रांसपोर्टिंग और डंपिंग की वजह से भी काफी मात्रा में धूलकण हवा में पहुंच जा रहे हैं. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड धनबाद में प्रदूषण का सबसे मुख्य कारण खुले ट्रक में कोयला की ढुलाई को बताता है.
कोयला रहने से शहर व आसपास के इलाकों में कोयला आधारित उद्योग भी चल रहे हैं. अब-तक हुए सभी अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि धनबाद में प्रदूषण की मात्रा अचानक नहीं बढ़ी. साल दर साल इसमें वृद्धि होती गयी. अगर क्षेत्रवार देखें तो झरिया सबसे अधिक और धनबाद का शहरी इलाका सबसे कम प्रदूषित है.
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर कोयला कंपनियों द्वारा हरियाली लाने और कोयला क्षेत्र की जमीन को बचाने का दावा अब तक बहुत असरदार साबित नहीं हो रहा है. बीसीसीएल द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय एवं फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट देहरादून के मार्गदर्शन में ग्रीन बेल्ट तैयार किया जा रहा है, जो अबतक नाकाफी साबित हो रहा है.
कोयला खदानों की भूमिगत आग
भारत दुनिया में तीसरे नंबर का कोयला उत्पादक देश है. यहां लगभग सौ वर्ष से अधिक समय से कोयला खदानों में लगी आग यहां की हवा को विषाक्त बना रही है. इसरो द्वारा 2016 में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार अभी जिले के झरिया कोलफील्ड में कुल 2.3 वर्ग किमी क्षेत्र भूमिगत आग से प्रभावित है.
इस आग की वजह से सल्फर ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मिथेन जैसी गैसों के साथ काफी छोटे सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) सीधे हवा में पहुंच जा रहे हैं. इनकी वजह से प्रति वर्ष एक लाख टन मिथेन, जो 23 लाख टन कार्बन की बराबर है, हवा में पहुंच रही है और हालात को और बद से बदतर बना रही है.
जनसंख्या विस्फोट
जिले में पर्यावरण की खराब स्थिति के लिए यहां तेजी से बढ़ती जनसंख्या है. 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में प्रति वर्ग किमी में 1284 लोग रहते हैं. यह घनत्व राज्य में सर्वाधिक है. अभी जिले की आबादी 30 लाख से अधिक हो गयी है. इतनी बड़ी आबादी को शहर में बसाने या रखने के लिए अब तक कोई प्लांड स्कीम नहीं है.
बढ़ते वाहन
वर्तमान में जिले की आबादी 30 लाख से अधिक है. यह शहर अपने देश में सबसे तेजी से विकास करने वाले शहरों में शामिल है. राज्य में सर्वाधिक वाहन खरीदारी करने वाला शहर है. पिछले एक दशक में 3.06 लाख वाहन धनबाद की सड़कों पर आ गये हैं. इन वाहनों में दोपहिया से लेकर कोयला खनन और ट्रांसपोर्टिंग में इस्तेमाल होने वाले बड़े वाहन भी शामिल हैं.
इसके साथ ही शहर में काफी तेजी से पुरानी गाड़ियों का कारोबार बढ़ रहा है. इस समय शहर में 30 हजार के करीब 15 साल या उससे अधिक पुराने वाहन चल रहे हैं. ये सभी वाहन या तो पेट्रोल या डीजल से चलते हैं. इनके चलने से होने वाले प्रदूषण की वजह से यहां के पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है. खास तौर से शहरी क्षेत्रों में होने वाले प्रदूषण की यह प्रमुख वजह है. वाहनों की संख्या में वृद्धि के साथ, इन ऑटोमोबाइल से प्रदूषण में भारी वृद्धि हो रही है.
वाहन में ईंधन का दहन विभिन्न गैसों जैसे सल्फर ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, काफी छोटे सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) आदि का उत्सर्जन करता है. यह सभी गैस पर्यावरण पर तत्काल और दीर्घकालिक प्रभाव पैदा कर रही है. इस सबके बावजूद यहां अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों का परिचालन रोकने की कार्रवाई नहीं हुई. इतनी गंभीर स्थिति के बावजूद प्रशासन का इस ओर ध्यान नहीं है.
वायु प्रदूषण
इलाका पीएम 10 का स्तर
डिगवाडीह 158.45
जोड़ापोखर 156.02
झरिया कतरास मोड़ 210.46
गोधर 220.68
कुसुंडा 200.24
करकेंद 196.23
पुटकी 204.27
सिजुआ 187.26
कतरास भगत सिंह चौक 201.18
महुदा 230.23
बैंक मोड़ 208.96
श्रमिक चौक 190.86
सिटी सेंटर 170.64
रणधीर वर्मा चौक 150.04
आइआइटी गेट 166.46
स्टील गेट 174.72
बिग बाजार 156.51
गोविंदपुर 198.26
बस स्टैंड 187.37
नोट : पीएम 10 का स्तर अधिकतम 100 होना चाहिए.
क्या है पीएम
पीएम यानी पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की एक किस्म है. इसके कण बेहद सूक्ष्म होते हैं जो हवा में बहते हैं. पीएम 2.5 या पीएम 10 हवा में कण के साइज़ को बताता है. आम तौर पर हमारे शरीर के बाल पीएम 50 के साइज़ के होते हैं. इससे आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पीएम 2.5 कितने बारीक कण होते होंगे. 24 घंटे में हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए.
हवा में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर ख़ून में घुल जाते है. इससे शरीर में कई तरह की बीमारी जैसे अस्थमा और सांसों की दिक्क़त हो सकती है.बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बूढ़ों के लिए ये स्थिति ज़्यादा ख़तरनाक होती है.
बीसीसीएल लगायेगा 20 से अधिक मॉनिटरिंग स्टेशन
ले में वायु प्रदूषण को नियंत्रण में लाने की बड़ी जिम्मेदारी बीसीसीएल को दी गयी है. क्लीन एयर एक्शन प्लान के तहत कंपनी को खनन स्थल, ओबी डंपिंग स्थल, लोडिंग प्वाइंट के साथ पूरे कोलियरी क्षेत्रों लगातार जल छिड़काव का निर्देश दिया गया है.
इसके साथ झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीसीसीएल को अपने कोलियरी क्षेत्रों में 20 से अधिक रियल टाइम एयर पॉल्यूशन मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित करने का निर्देश दिया है.
यह सभी स्टेशन 31 मार्च 2020 तक लगाने का निर्देश दिया गया है. इस के साथ ही शहरी क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड खुद चुनिंदा स्थानों पर ऐसा स्टेशन स्थापित करेगा. अभी इस तरह का सिर्फ एक स्टेशन जोड़ापोखर में है. इसके जरिये दुनिया के किसी भी कोने से यहां के वायु प्रदूषण की स्थिति को देखा जा सकता है.
हालात पहले से बेहतर हो रहे हैं
धनबाद में पर्यावरण की स्थिति राज्य में सबसे खराब है. इसी वजह से देश के प्रदूषित शहरों के लिए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नेशनल क्लीन एयर कार्यक्रम शामिल किया गया है. लेकिन दूसरा सच यह भी है कि धनबाद में पहले से हालात बेहतर हुए हैं.
इसे और बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं. धनबाद नगर निगम को इसके लिए 10 करोड़ रुपये दिये जा रहे हैं. इसमें से तीन करोड़ रुपये 13 जनवरी को जारी कर दिये गये हैं. नगर निगम इस राशि का मैकेनिकल स्वीपर खरीदने के साथ प्रदूषण कम करने के लिए अन्य उपायों पर खर्च करेगा.
– राजीव लोचन बख्शी, मेंबर, सेक्रेटरी झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
प्रदूषण को गंभीरता से लेने की जरूरत
वायु प्रदूषण से यहां के लोग खांसी, सिरदर्द, अस्थामा, चर्मरोग और सांस की बीमारियों से जूझ रहे हैं. हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए. कम से कम वाहन से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए.
हवा में कार्बन-मोनोक्साइड से खून में ऑक्सीजन वहन करने की क्षमता कम होती है. परिणामस्वरूप हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है. सल्फर डाइऑक्साइड से दिल और फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. इससे ब्रांकियल समस्याएं, नाक बंद होना, कफ की समस्या बढ़ जाती है.
नेत्र दोष भी होता है. हाइड्रोजन सल्फाइड से न्यूरो-टॉक्सिक, लंग्स एवं थ्रोड (गला) प्रभावित होता है. कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. कार्बन-डाइऑक्साइड से सांस लेने में परेशानी तथा अचानक चेतना में कमी होती है. नेत्र संबंधी कई विकार भी होते हैं.
– डॉ एमएम मिश्रा, रिटायर्ड एचओडी, मेडिसीन विभाग पीएमसीएच
पौधरोपण से ही पर्यावरण में होगा सुधार
पेड़ ही प्रकृति की एक मात्र रचना है, जो हवा की कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अवशोषित करता है. धनबाद में प्रदूषण के स्तर को कम करना है तो हमें खाली जगहों अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे. लेकिन पेड़ लगाने में भी सावधानी बरतनी चाहिए.
हमें स्थानीय पेड़ों को अधिक महत्व देना चाहिए. क्योंंकि ऐसे पेड़ यहां की जलवायु में जीने की क्षमता रखते हैं. इन पेड़ों में पलास, गम्हार, सखुआ, पीपल, नीम, सागवान, बरगद जैसे पेड़ शामिल हैं. सरकार को इसे बढ़ावा देना चाहिए.
धनबाद के प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए बेहतर टाउन प्लानिंग की जरूरत है. उसमें रिहाइशी इलाकों के साथ ही औद्योगिक क्षेत्रों के लिए अलग-अलग सुनिश्चित जगह होनी चाहिए. शहर को सेक्टरों में बसाया जाना चाहिए. हर सेक्टर के बीच पौधरोपण के लिए पर्याप्त जगह मिल जायेगी.
– डॉ अंशु माली, एसोसिएट प्रोफेसर, पर्यावरण विभाग, आइआइटी आइएसएम
अब तक नाकाफी हैं सुधार
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सख्ती के बाद हालात में सुधार हुए हैं, लेकिन यह नाकाफी है. इसमें और अधिक सुधार की गुंजाइश है. यह सुधार तभी होगा, जब बीसीसीएल प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर सख्ती से अमल करेगा.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड खुद बीसीसीएल द्वारा किये जा रहे उपायों की निगरानी कर रही है. अब तक बीसीसीएल धनबाद के लोगों के स्वास्थ्य से खेल रहा है. अब धनबाद के पर्यावरण की स्थिति में सुधार लाने की जिम्मेदारी उसी की है. अगर कंपनी समय सीमा के भीतर बोर्ड के टास्क को पूरा नहीं करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए बोर्ड बाध्य होगा.
– राजीव शर्मा, सदस्य, झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड