धनबाद : इस गांव में 40 साल के बाद सीधे चल नहीं सकते. अधिकांश घरों में खाट पर बीमार व्यक्ति मिल जायेगा. अब हालात ऐसे हो गये हैं कि रिश्ते-नाते टूटने लगे हैं. तीन साल में गांव में कोई बहू नहीं आयी है. दूसरे गांव के लोग अपनी बेटी नहीं देना चाहते है. यह हाल बलियापुर की घड़बड़ पंचायत का है.
करीब 250 की आबादीवाला यहां का ब्राह्मण टोला फ्लोराइड की मार से सबसे अधिक प्रभावित गांव है. गुरुवार को प्रभात खबर की टीम इस गांव पहुंची. फ्लोराइड का कहर झेलनेवाले इस गांव में सालों से काेई डॉक्टर भी नहीं आया है, जाे लोगों की जांच कर उसके स्वास्थ्य की जानकारी दे सके और उनका इलाज कर सके.यहां के लोग चापानलों का पानी नहीं पीयें, पीएचइडी ने इसके लिए सप्लाई योजना तैयार कर दी, लेकिन इसका लाभ गांव के लोगों को नहीं मिला है.
बदल गयी है चाल : यहां के हालात ऐसे हो गये हैं कि गांव में प्रवेश करते ही लोगों के चाल उनका दर्द बयां करते हैं. शायद ही कोई ऐसा मिलेगा, जो सीधे चल रहा हो. स्थिति ऐसी हाे गयी है कि गलती से पत्थर से ठोकर लग कर गिर गये, तो हड्डी तक टूट ही जाती है.
6.98 मिली ग्राम तक है फ्लोराइड की मात्रा : गांवों के चापानलों की हुई जांच के एक लीटर पानी में 2 मिलीग्राम से 6.98 मिलीग्राम तक फ्लोराइड मिला है, जो बहुत ही खतरनाक माना जाता है. यह आंकड़ा सेंट्रल लैब का है, जबकि पेयजल विभाग की ओर से खुद के लैब में करायी गयी जांच में बलियापुर के घड़बड़ और वीरसिंगपुर के लगभग सभी गांव प्रभावित हैं.
क्या कहते हैं जानकार : पानी पर अध्ययन करनेवाले कोडरमा पॉलीटेक्निक के शिक्षक डॉ एसपी यादव बताते हैं कि अधिक मात्रावाला फ्लोराइड युक्त पानी शरीर के लिए हानिकारक होता है. दांत खराब होना इसके शुरुआती लक्षण हैं. गर्दन, कमर, घुटने की हड्डी टेड़ी होने लगती है. लोग सीधा नहीं चल पाते हैं. सुबह बिस्तर से उठने में भी दिक्कत होती है. आंख की रोशनी पर भी असर पड़ता है. स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो उस चापाकल के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए न करें. फ्लोराइड का असर अचानक से नहीं दिखता है. धीरे-धीरे असर दिखता है. लोगों को जब तक इस बीमारी का पूरी तरह से पता चलता है, बहुत देर हो चुकी होती है.