मालूम हो कि चितरा थाना क्षेत्र स्थित जमुआ गांव का आदिवासी टोला चितरा कोलियरी से मात्र दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. उसके बावजूद कोलियरी प्रबंधन द्वारा पेयजल हेतु कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. आश्चर्य की बात तो यह है कि पेयजल हेतु कोलियरी प्रबंधन द्वारा प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च किया जाता है. इस संबंध में ग्रामीण रसोदी मुर्मू, रानी मरांडी, प्रदुमनी सोरेन, रामफल राणा आदि ने बातचीत करते हुए कहा कि जमुआ गांव स्थित खेत में बने डोभा से पानी निकलता है और उसी पानी को हमलोग अपने घर ले जाते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं. यह भी कहा कि कुछ दिन के बाद खेत स्थित डोभा में भी ज्यादा लम्बा लाइन लग जाता है और अपनी बारी इंतजार करने के बाद पानी ले पाते हैं. कहा कि पानी के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
Advertisement
पेयजल समस्या: जमुआ आदिवासी टोला के लोग डेढ़ किमी दूर से लाते हैं पीने का पानी, दूर डोभा से पानी लाकर बुझाते हैं प्यास
चितरा.चितरा कोलियरी प्रक्षेत्र के जमुआ गांव स्थित आदिवासी टोला के लोग करीब डेढ़ किलोमीटर लाइन लगाकर पीने का पानी लाकर अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं. आदिवासियों के पेयजल हेतु न तो जिला प्रशासन द्वारा पहल किया जा रहा और न ही कोलियरी प्रबंधन द्वारा. इतना ही नहीं आदिवासियों के पेयजल हेतु पंचायत स्तर के […]
चितरा.चितरा कोलियरी प्रक्षेत्र के जमुआ गांव स्थित आदिवासी टोला के लोग करीब डेढ़ किलोमीटर लाइन लगाकर पीने का पानी लाकर अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं. आदिवासियों के पेयजल हेतु न तो जिला प्रशासन द्वारा पहल किया जा रहा और न ही कोलियरी प्रबंधन द्वारा. इतना ही नहीं आदिवासियों के पेयजल हेतु पंचायत स्तर के प्रतिनिधियों का भी ध्यान नहीं गया है. इस कारण जमुआ गांव के आदिवासी टोला के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
मालूम हो कि चितरा थाना क्षेत्र स्थित जमुआ गांव का आदिवासी टोला चितरा कोलियरी से मात्र दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. उसके बावजूद कोलियरी प्रबंधन द्वारा पेयजल हेतु कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. आश्चर्य की बात तो यह है कि पेयजल हेतु कोलियरी प्रबंधन द्वारा प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च किया जाता है. इस संबंध में ग्रामीण रसोदी मुर्मू, रानी मरांडी, प्रदुमनी सोरेन, रामफल राणा आदि ने बातचीत करते हुए कहा कि जमुआ गांव स्थित खेत में बने डोभा से पानी निकलता है और उसी पानी को हमलोग अपने घर ले जाते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं. यह भी कहा कि कुछ दिन के बाद खेत स्थित डोभा में भी ज्यादा लम्बा लाइन लग जाता है और अपनी बारी इंतजार करने के बाद पानी ले पाते हैं. कहा कि पानी के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
कहते हैं अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के कार्यकारिणी सदस्यः इस संबंध में कार्यकारिणी सदस्य सह यूनियन प्रतिनिधि होपना मरांडी ने कहा कि कई सालों से आदिवासी गांव के लोग खेत में बने डोभा से पानी लाकर अपनी प्यास बुझाते रहे हैं. पेयजल की व्यवस्था के लिए न तो कोलियरी प्रबंधन द्वारा पहल किया जा रहा है और न ही जिला प्रशासन द्वारा. इससे आदिवासी समुदाय के लोग नारकीय जीवन जीने को विवश हैं.
कहते हैं झामुमो जिलाध्यक्षः
नरसिंह मुर्मू ने कहा कि जमुआ स्थित आदिवासी टोला के लोगों के लिए पेयजल की व्यवस्था हेतु किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान आज तक नहीं गया है. कहा कि पेयजल की व्यवस्था हेतु प्रयास किया जायेगा.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement