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शिक्षक नियुक्ति में फरजीवाड़ा: बरती गंभीर लापरवाही, अपनायी मनमानी प्रकिया
देवघर : देवघर की शिक्षक नियुक्ति में अनियमितता एवं फर्जीवाड़ा के मामले में जिला शिक्षा पदाधिकारी उदय नारायण शर्मा ने जिला शिक्षा अधीक्षक सुधांशु शेखर मेहता (सेवा संवर्ग : झारखंड शिक्षा सेवा संवर्ग-2, वेतनमान : 9300-34800) के विरुद्ध प्रपत्र-क गठित कर उप समाहर्ता के माध्यम से डीसी देवघर को भेज दिया है. इसमें श्री मेहता […]
देवघर : देवघर की शिक्षक नियुक्ति में अनियमितता एवं फर्जीवाड़ा के मामले में जिला शिक्षा पदाधिकारी उदय नारायण शर्मा ने जिला शिक्षा अधीक्षक सुधांशु शेखर मेहता (सेवा संवर्ग : झारखंड शिक्षा सेवा संवर्ग-2, वेतनमान : 9300-34800) के विरुद्ध प्रपत्र-क गठित कर उप समाहर्ता के माध्यम से डीसी देवघर को भेज दिया है.
इसमें श्री मेहता पर लापरवाही बरतने से लेकर मनमानी प्रक्रिया अपनाने आदि के गंभीर आरोप लगे हैं. कार्यपालक दंडाधिकारी की जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रपत्र क गठित कर कार्रवाई शुरू कर दी गयी है. प्रपत्र-क में कुल नौ आरोप तय किये गये हैं. साथ ही आरोप का पूर्ण विवरण एवं साक्ष्य का हवाला दिया गया है. गठित आरोप पत्र विभाग को भेजा जायेगा. इसके बाद कार्रवाई की प्रक्रिया आरंभ की जायेगी.
क्या-क्या है प्रपत्र क में
1 : नियुक्ति से पूर्व कांउसेलिंग के लिए गठित जांच दल को जिला शिक्षा अधीक्षक देवघर द्वारा शिक्षक नियुक्ति से संबंधित प्रमाण पत्र (टेट/प्रशिक्षण प्रमाण पत्र) की गहन जांच के लिए कोई मार्ग दर्शन उपलब्ध नहीं कराया गया.
2 : जिला शिक्षा अधीक्षक ने अपने सहकर्मी तथा नियुक्ति संचिका प्रभारी कार्यालय सहायक तथा डाटाइंट्री ऑपरेटर के सहयोग से उक्त नियुक्ति नियमावली के विपरीत कार्य कर सक्षम उम्मीदवारों को उनके उचित हक से वंचित कर गलत/अक्षम व्यक्तियों को नियुक्ति पत्र प्रदान कर गंभीर अपराध किया गया है.
3 : झारखंड प्रारंभिक शिक्षक नियुक्ति (यथा संशोधित) नियमावली के अधीन निर्धारित कोटा में संबंधित कोटा के अभ्यर्थी दूसरे कोटा में आवेदन नहीं कर सकते थे. इस प्रकार प्राय: यह पाया गया कि वैसे पारा शिक्षक अभ्यर्थी जिन्होंने गैर पारा शिक्षक कोटा की रिक्ति के विरुद्ध आवेदन किया है. आवेदन की कंडिका-20 को रिक्त रखा गया है. या पारा शिक्षक के रूप में कार्यरत नहीं रहने की सूचना दी गयी है. दोनों परिस्थितियों में उनका आवेदन पोषणीय नहीं होता है. कंडिका-20 को रिक्त रखने से आवेदन अपूर्ण होता है, जो मान्य नहीं है. अमान्य आवेदनों को नियुक्ति हेतु विचारण करना भी गंभीर अपराध माना जाता है.
4 : नियुक्ति से संबंधित अभिलेखों का संधारण कार्यालय में ठीक ढंग से नहीं किया गया है. आवेदन देते समय आवेदक के डाटाबेस को प्रशिक्षित कंप्यूटर ऑपरेटर से अपलोड नहीं कराया गया. यह भी एक चिंतनीय विषय है. जिससे प्रतीत होता है कि इंटर/स्नातक प्रशिक्षित शिक्षकों (पारा/गैर पारा) की नियुक्ति को जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय, देवघर द्वारा गंभीरता पूर्वक नहीं लिया गया.
5 : जांच प्रतिवेदन के आवेदन क्रमांक 00342 रतन कुमार सिन्हा एवं मदन मोहन यादव के संबंध में जांच दल का प्राप्त तथ्य यह है कि जन्मतिथि 06.10.1984 अंकित है. शिक्षक नियुक्ति वर्ष (2015-16 के अावेदन में) जबकि 30.12.1972 अंकित है (2013-14 की शिक्षक नियुक्ति वर्ष में आवेदन में) साथ ही मूल आवेदन पत्र उपलब्ध नहीं है. ये सहायक मनीष कुमार के करीबी रिश्तेदार हैं. मदन मोहन यादव का आवासीय प्रमाण पत्र जांच योग्य, जबकि मूल निवासी बिहार के और अजजा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बिहार के निर्वाचक नामावली 2015 के क्रमांक 78 पर (भाग संख्या 81) दर्शित है.
6 : आवेदन क्रमांक 001187 एवं 00874 के अभ्यर्थी संजय कुमार यादव एवं राम लखन प्रसाद यादव के आवेदन और डाटाबेस में विरोधाभास पाया गया. डाटाबेस में विकलांग दर्शित नहीं है. जबकि आवेदन प्रपत्र में है.
7 : आवेदन क्रमांक 00539 शैलेश कुमार पाठक के डीपीइ के मेधा अंक में बढ़ोत्तरी 59.42 के बदले 69.00 प्रतिशत दर्शाया गया है.
8 : आवेदन क्रमांक 00328 शांतनु सौरभ एवं सरिता कुमारी का मूल आवेदन उपलब्ध होने पर प्रथम दृष्टया प्रमाण पत्र फर्जी प्रतीत होता है.
9 : कार्यालय के कुछ कर्मियों की मिलीभगत से अपने निजी स्वार्थवश अभ्यर्थियों को मनमाने तरीके से चयनित कराया गया. जिसमें कार्यालय के सहायक मनीष कुमार व संतोष कुमार की भूमिका संदेहास्पद है. इस प्रकार स्पष्ट है कि जिला शिक्षा अधीक्षक देवघर का अपने कार्यालय एवं कर्मियों पर नियंत्रण नहीं है.
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