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पेच: सरकार की ओर से दिये गये जवाब पर उठे सवाल, प्रबंधन बोर्ड को भंग करने के लिए सरकार गयी कोर्ट

देवघर : बाबा बैद्यनाथ-बासुकिनाथ के लिए श्राइन बोर्ड के गठन के बाद मंदिर प्रबंधन बोर्ड का कोई औचित्य नहीं रह गया है. बोर्ड के गठन के बाद बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रबंधन बोर्ड देवघर को भंग करने संबंधी विधानसभा में पूछे गये तारांकित सवाल पर सरकार की ओर से जवाब दिया गया है कि बाबा बैद्यनाथ-बासुकिनाथ […]

देवघर : बाबा बैद्यनाथ-बासुकिनाथ के लिए श्राइन बोर्ड के गठन के बाद मंदिर प्रबंधन बोर्ड का कोई औचित्य नहीं रह गया है. बोर्ड के गठन के बाद बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रबंधन बोर्ड देवघर को भंग करने संबंधी विधानसभा में पूछे गये तारांकित सवाल पर सरकार की ओर से जवाब दिया गया है कि बाबा बैद्यनाथ-बासुकिनाथ तीर्थ क्षेत्र विकास प्राधिकार विधेयक 2015 पर राज्यपाल द्वारा 07.02.16 को अनुमति प्रदान कर दी गयी है.

बाबा बैद्यनाथ-बासुकिनाथ के लिए श्राइन बोर्ड के गठन के बाद मंदिर प्रबंधन बोर्ड का कोई औचित्य नहीं है. बोर्ड के गठन के बाद बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रबंधन बोर्ड देवघर को भंग करने के लिए झारखंड हाइकोर्ट में सीएमपी दाखिल किया गया है. जिसका ओथ संख्या 5391 दिनांक 26-2-16 है. यह जवाब सरकार ने जामताड़ा विधायक डाॅ इरफान अंसारी के सवाल पर दिया है.

वहीं देवघर-बासुकिनाथ बाबा मंदिर श्राइन बोर्ड का गठन किया गया है जो क्या विधानसभा से पारित है. साथ ही कानूून का रूप दिया गया है के सवाल पर सरकार ने कहा कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रबंधन बोर्ड देवघर का गठन झारखंड हाइकोर्ट द्वारा वाद संख्या सीडब्ल्यूजेसी नंबर 1799/2001 में पारित आदेश के तहत हुआ था. इस पूरे मामले में कांग्रेस के देवघर जिलाध्यक्ष मुन्नम संजय ने सोमवार को प्रेस कांफ्रेंस की तथा सरकार द्वारा सीएमपी दाखिल करने को गलत करार दिया. उन्होंने कहा कि श्रावणी मेला शुरू होने में महज तीन महीने बचे हैं.

ऐसे में श्राइन बोर्ड सुचारू रूप से काम नहीं करेगा तो मेला प्रभावित होगा. इसलिए एक प्रतिनिधि मंडल जल्द ही सरकार से मिल कर ज्ञापन सौंपेंगी. प्रेस कांफ्रेंस में वरिष्ठ कांग्रेसी दुर्लभ मिश्र ने कहा कि अध्यादेश के बाद श्राइन बोर्ड को मंदिर प्रबंधन का जिम्मा ले लेना चाहिए था. कमिश्नर सह सीइओ को चार्ज टेकओवर कर लेना चाहिए था. लेकिन, अभी तक ऐसा नहीं हुआ. प्रबंधन बोर्ड को तात्कालिक कारण से बनाया गया था. कानून बनने के बाद सरकार कोर्ट में अपील करने के बदले उन्हें सूचित करती. लेकिन, ऐसा नहीं किया गया. यह पूरी तरह कानून का अपमान है. इस मौके पर पूर्व सांसद फुरकान अंसारी, राकेश नरौने, गंगा राउत आदि उपस्थित थे.

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