मंदिर व मूर्ति की स्थापना के बाद इसकी प्राण-प्रतिष्ठा व विशेष पूजा के उपरांत स्व शालीग्राम मिश्र ने आचार्य की भूमिका निभाते हुए श्लाेक पढ़ने का काम किया था़ इसलिए वंशजों के द्वारा विश्व कल्याणार्थ पहली बार विशेष पूजा का आयोजन किया गया़ यह पूजा हर साल करने का निर्णय लिया गया है.
इस अवसर पर नुनु भाई मिश्र, गोरन मिश्र, हुरी मिश्र, गौतम मिश्र, गोविंद मिश्र, रमेश मिश्र, मिथिलेष मिश्र, नरेश कुमार मिश्र, जुगनू मिश्र थे़