देवघर: झारखंड के तमाम जिलों का भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है. भू-जल के गुणवत्ता की स्थिति यह है कि इसमें कहीं फ्लोराइड, कहीं आर्सेनिक, कहीं नाइट्रेट तो कहीं आयरन की मात्र अधिक पायी जा रही है. यह काफी चौकाने वाला मामला है. यह रिपोर्ट भारत सरकार के जलसंसाधन विभाग की है. रिपोर्ट के अनुसार, भू-जल प्रदूषित इसलिए हो रहा है, क्योंकि नाइट्रेट और भारी मात्र में धातुएं भू-वैज्ञानिक घटनाओं और मानव जनित क्रियाकलापों जैसे खनन, उद्योग एवं अपशिष्ट निपटान के कारण उत्पन्न हो रहे हैं.
11 जिले में नाइट्रेट अधिक
झारखंड के लगभग सभी जिले के भू-जल दूषित हैं. गोड्डा, बोकारो, गिरिडीह, पलामू, गुमला, रामगढ़ व रांची जिले में फ्लोराइड की मात्र 1.5 मि ग्राम/ली से अधिक है, वहीं गोड्डा, पाकुड़, चतरा, गढ़वा, गुमला, लोहरदगा, पलामू, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, रांची व साहिबगंज में 45 मिग्रा/ली से अधिक नाइट्रेट पायी गयी है. इसी तरह देवघर, चतरा, पश्चिमी सिंहभूम, गिरिडीह, रांची व पूर्वी सिंहभूम जिले में भू-जल में 1.0 मिग्रा/ली से अधिक आयरन की मात्र है. ये जो आंकड़े हैं रासायनिक तत्व बीआइएस मानकों से अधिक रिपोर्ट किये गये हैं. यह रिपोर्ट केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने एकत्र किया है. यह सर्वेक्षण वर्ष में एक बार कराया जाता है.
सरकार ने पेश की थी रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों और भू-जल गुणवत्ता निगरानी के दौरान सृजित लवणता, फ्लोराइड, लौह, नाइट्रेट और भारी धातुओं जैसे शीशे से संदूषित है. देश के 19 राज्यों में फ्लोराइड की अधिक सांद्रता, 20 राज्यों में नाइट्रेट की अधिक सांद्रता और 23 राज्यों में आयरन की अधिकता है. 21 मार्च 2013 को सांसद निशिकांत दुबे द्वारा पूछे गये प्रश्न के आलोक में केंद्रीय मंत्री ने उपरोक्त जानकारी सदन में दिया था.
लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि पिछड़े इलाके में सुरक्षित भू-जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कोई योजना तैयार की गयी है या नहीं. इस मामले में मंत्री ने गोल-मटोल जवाब दे दिया. मंत्री ने संदूषित जल का उपचार करने में असमर्थता जतायी है. और कहा है कि इन इलाके में सुधारात्मक उपायों में जलापूर्ति के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराने पर जोर दिया जा रहा है.