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प्रवचन:::: स्टोनहेंज मंदिर में ड्रू इड कर्मकांड होते थे

दक्षिण वेल्स तथा मार्लबरो से विशालकाय पत्थर न जाने किन साधनों द्वारा निर्माण-स्थल तक लाये गये. मंदिर का बाहरी वृत्त तीस स्तंभों पर बना था जिनमें से अब केवल सत्रह स्तंभ शेष रह गये हैं. इसके लिए पत्थर मार्लबरो की खदानों से खोदे गये थे. भीतरी वृत्त लगभग साठ नीले पत्थरों से बना है जो […]

दक्षिण वेल्स तथा मार्लबरो से विशालकाय पत्थर न जाने किन साधनों द्वारा निर्माण-स्थल तक लाये गये. मंदिर का बाहरी वृत्त तीस स्तंभों पर बना था जिनमें से अब केवल सत्रह स्तंभ शेष रह गये हैं. इसके लिए पत्थर मार्लबरो की खदानों से खोदे गये थे. भीतरी वृत्त लगभग साठ नीले पत्थरों से बना है जो दक्षिण वेल्स से लाये गये थे. मंदिर के मध्य में जो बाहरी यू आकार था उसमें पांच कमानीदार दरवाजे थे जो अरबी पत्थर के बने थे. भीतरी यू आकार उन्नीस नीले पत्थरों से बना था. भीतरी यू आकार में एक अभ्रकी बालू का पत्थर था जिसे वेदिका पत्थर कहा जाता था. गरमी में वर्ष के सबसे लंबे दिन में प्रात:कालीन सूर्य की किरणें वेदिका पत्थर पर पड़ती थीं. इस मंदिर (मंडल) के निर्माण मेें जटिल तांत्रिक प्रतीक शास्त्र का पर्याप्त प्रयोग किया गया है जो आज के तांत्रिक ध्यान में दृष्टिगोचर होता है. ऐसा लगता है कि स्टोनहेंज का मंदिर में ड्रू इड कर्मकांड होते थे, यह ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को साधकों की ओर अनुप्रेरित करता था.

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