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प्रवचन :::प्राचीन संगीत का विकास नादयोग साधना के सिद्धांतों पर हुआ था

मध्यमा – यह फुसफुसाहट की ध्वनि होती है जो बैखरी की अपेक्षा कठिनाई से सुनी जाती है.पश्यन्ति – इसे मानसिक ध्वनि कहते हैं, जो कानों द्वारा नहीं सुनी जा सकती, परंतु मन में इसका अनुभव कर सकते हैं. यह स्वप्न में सुना गया संगीत, कल्पित वार्तालाप अथवा कोई भी मानसिक ध्वनि हो सकती है.परानाद – […]

मध्यमा – यह फुसफुसाहट की ध्वनि होती है जो बैखरी की अपेक्षा कठिनाई से सुनी जाती है.पश्यन्ति – इसे मानसिक ध्वनि कहते हैं, जो कानों द्वारा नहीं सुनी जा सकती, परंतु मन में इसका अनुभव कर सकते हैं. यह स्वप्न में सुना गया संगीत, कल्पित वार्तालाप अथवा कोई भी मानसिक ध्वनि हो सकती है.परानाद – यह भावातीत ध्यान है. यहीं से वास्तविक नाद प्रारंभ होता है. यह इतना सूक्ष्म होता है कि यह मन की पकड़ के बाहर होता है. इसमें किसी प्रकार का कंपन नहीं होता. इसकी तरंग की लंबाई अनंत होती है. प्राचीन संगीत का विकास नादयोग साधना के सिद्धांतों पर हुआ था. नाद की विभिन्न प्रकार की लहरें चेतना के सभी स्तरों वाले व्यक्तियों के लिये समान रूप से अनुकूल नहीं होती. नाद की कुछ लहरें किन्हीं लोगों की बड़ी अरुचिकर लगती है, जबकि कुछ लहरें दूसरों के लिये बड़ी आनंददायी होती है. इसी प्रकार कुछ लहरें दिन के विशिष्ट समय में मनभावन, तो किसी अन्य समय में अरुचिकर लगती है.

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