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प्रवचन ::: नाद सतत् सनातन सृजनात्मक ध्वनि

नादयोगसंस्कृत के शब्द नाद का अर्थ होता है-‘ध्वनि’ अथवा ‘चेतना का प्रवाह’. नाद सतत् सनातन सृजनात्मक ध्वनि है तथा यह आध्यात्मिक साधना का केंद्र बिंदु भी है. ध्वनि की तरंगें स्थूल से सूक्ष्म, बाहर से अंदर, अतींद्रिय के कारण जगत् तथा उसके भी परे संपूर्ण ब्रह्मांड में तरंगित होती हुई तंत्र का स्वरूप निर्माण करती […]

नादयोगसंस्कृत के शब्द नाद का अर्थ होता है-‘ध्वनि’ अथवा ‘चेतना का प्रवाह’. नाद सतत् सनातन सृजनात्मक ध्वनि है तथा यह आध्यात्मिक साधना का केंद्र बिंदु भी है. ध्वनि की तरंगें स्थूल से सूक्ष्म, बाहर से अंदर, अतींद्रिय के कारण जगत् तथा उसके भी परे संपूर्ण ब्रह्मांड में तरंगित होती हुई तंत्र का स्वरूप निर्माण करती है.अब विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि सभी पदार्थ, यहां तक कि ठोस तथा स्थिर दिखने वाले भी निरंतर गतिशील हैं. अतएव हर वस्तु तरंगावस्था में है. अत: इन ध्वनि तरंगों को अनुभव करना, उन्हें जानना, उनका पता लगाना, उनका शुद्धिकरण करना तथा उन पर नियंत्रण स्थापित करना इत्यादि नाद का विषय है. अत: साधक के प्राण, प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं जिससे उसके शरीर तथा मन में व्यवस्थित वाद्य यंत्र की तरह नवीन संगीत मुखरित होता है.

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