देवघर : दुष्कर्म पीड़िता (नाबालिग) के मेडिकल जांच मामले में सदर अस्पताल प्रबंधन ने सुनियोजित तरीके से मेडिकल टीम गठित कर रिपोर्ट के नाम पर खानापूर्ति की है. ठेठ भाषा में कहे तो मेडिकल रिपोर्ट में निलंबित थाना प्रभारी जरमुंडी राधे श्याम दास को क्लीन चिट देकर पूरे मामले पर कफन ओढ़ाने की तैयारी की गयी है.
मेडिकल एक्सपर्ट की मानें तो सोची समझी रणनीति के तहत विशेषज्ञ व अनुभवी डॉक्टर को मेडिकल बोर्ड में तरजीह नहीं दी गयी. इससे पहले बोर्ड ने मेडिकल जांच रिपोर्ट फाइनल करने के बजाय कई दिनों तक लटकाये रखा. रिपोर्ट में विलंब होने पर जनता का शक गहराने लगा. अब जब मेडिकल रिपोर्ट पर टिका-टिप्पणी शुरू हुई तो स्वास्थ्य विभाग में हलचल शुरू हो गयी है.
टीम में विशेषज्ञों को रखने के नियम की अनदेखी
अमूमन यौन पीड़ित मामले में पीड़िता की जांच के लिए मेडिकल टीम में स्त्री रोग चिकित्सक के अलावा रेडियोलॉजिस्ट व डेंटल चिकित्सक की जरूरत होती है. रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक नहीं होने की स्थिति में आर्थोपेडिक्स चिकित्सक को मेडिकल टीम में रखा जाता है. देखा जाये तो सदर अस्पताल में एक से बढ़ कर एक अनुभवी व विशेषज्ञ चिकित्सक हैं.
एक महिला चिकित्सक जो स्त्री रोग विशेषज्ञ भी हैं. इनको कार्य का करीब ढ़ाई दशक का अनुभव है. साथ ही स्त्री रोग में डिप्लोमा की हुई हैं. वर्षो बाद रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक का पदस्थापन सदर अस्पताल में किया गया है. बावजूद मेडिकल जांच टीम में एक महिला चिकित्सक जो बतौर इएनटी चिकित्सक सदर अस्पताल में पदस्थापित हैं, उन्हें शामिल किया गया है.
साथ ही आर्थोपेडिक्स व एक डेंटल चिकित्सक को भी रखा गया. नियमों को ताक पर रखकर टीम बनी, जांच भी हुई. लेकिन, जांच करने के बाद रिपोर्ट पांच दिन बाद दिया गया. केस की आइओ लगातार संपर्क करती रही लेकिन रिपोर्ट नहीं मिली.
हार कर महिला थाना प्रभारी ने सीएस को पत्र लिखकर रिपोर्ट देने का आग्रह किया. तब जाकर नींद खुली और महिला चिकित्सक जिसके कारण रिपोर्ट पेंडिंग था, रिपोर्ट जारी हुआ. जानकार कहते हैं ऐसे में रिपोर्ट की सत्यता पर लोगों द्वारा सवाल खड़े करना स्वाभाविक है.